साहित्य लहर

कविता : दीप बन जायें

कविता : दीप बन जायें… करें जागृत हर मन को हम सब, पावन भारत भूमि आओ सजायें। फैले खुशियां जग में हर पल, चक्षु ज्ञान से भगायें अंधियारा। दीप जलायें मिलकर हम सब, चहुं दिशा में फैलायें उजियारा। प्रफुल्लित होगा हर अन्तर्मन तब,जब एक एक दीप हम बन जायें। बनकर झिलमिल सभी सितारे, #भुवन बिष्ट, रानीखेत (उत्तराखंड)

बनकर झिलमिल सभी सितारे,
पावन भारत भूमि आओ सजायें।
प्रज्वलित करें हम हर पथ को,
आओ दीप एक-एक बन जायें।

फैला तम का कोहरा है जो यह,
अंतर्मन ज्योति से इसे मिटायें।
रूकना न थकना इस पथ पर,
हम सब साहस से चलते जायें।

करें जागृत हर मन को हम सब,
पावन भारत भूमि आओ सजायें।
फैले खुशियां जग में हर पल,
चक्षु ज्ञान से भगायें अंधियारा।

दीप जलायें मिलकर हम सब,
चहुं दिशा में फैलायें उजियारा।
प्रफुल्लित होगा हर अन्तर्मन तब,
जब एक एक दीप हम बन जायें।

बनकर झिलमिल सभी सितारे,
पावन भारत भूमि आओ सजायें।
प्रज्वलित करें हम हर पथ को,
आओ दीप एक-एक बन जायें।

डाक व्यवस्था चरमराई, जनता परेशान


कविता : दीप बन जायें... करें जागृत हर मन को हम सब, पावन भारत भूमि आओ सजायें। फैले खुशियां जग में हर पल, चक्षु ज्ञान से भगायें अंधियारा। दीप जलायें मिलकर हम सब, चहुं दिशा में फैलायें उजियारा। प्रफुल्लित होगा हर अन्तर्मन तब,जब एक एक दीप हम बन जायें। बनकर झिलमिल सभी सितारे, #भुवन बिष्ट, रानीखेत (उत्तराखंड)

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