कविता : यादों का भंवर

राजीव कुमार झा
दोस्ती में हमने
इस शहर में
तुम्हारे साथ जीवन
बिताया
आज कोई
अकेला दिन
बहुत पास आया
उसने मुझे बताया
अब यह शहर
काफी बदल गया
आदमी पुराना घर
छोड़ कर काफी दूर
अनजानी जगहों पर
रहने के लिए
कुछ दिन पहले
चला गया
यहां वह कभी कभार
आता
पुराने पड़ोसियों के
साथ
कुछ पल बिताता
लोगों को
अपना नया घर
देखने के लिए
शहर में बुलाता
उसकी कहानी
मुझे याद आती
रोज हवा सुबह में
उसके बारे में
आकर बताती
चांदनी रात में
तुम कभी जब मुस्कुराती
यादों के दरख़्त
रंगबिरंगे फूलों से
गुलज़ार हो उठते
सुबह में सबने देखा
बागों में सुनहरी
धूप को हंसते
नदी की धारा में
फेंके
पूजा के पुराने
फूल बहते
ताजे फूल
सारे दिन मन में
महकते
तुम्हारी आत्मा में
जीवन की जलती
ज्योति
सागर के तल में
बिखरे माणिक
मोती
बीते समय की
सारी बातें पुरानी
तुम छेड़ देती
मन का साज
अंतहीन जीवन की
कोई कहानी
रीते मन से बहता
उस प्रेम का पानी
जो नदी की धारा में
बहता
यादों के भंवर में
सूरज
रोज डुबता – उतराता
निकलता
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »राजीव कुमार झाकवि एवं लेखकAddress »इंदुपुर, पोस्ट बड़हिया, जिला लखीसराय (बिहार) | Mob : 6206756085Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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