कविता : एक प्रेम ऐसा भी
नवाब मंजूर
ना हम तुम्हें
ना तुम हमें
जानते हो।
ना तुम हमें
ना हम तुम्हें
पहचानते हैं।
फिर भी
तुम हमें
हमें तुम्हें
चाहते हैं।
कभी तुम हमारा
कभी हम तुम्हारा
दर्द बांटते हैं।
मुश्किल घड़ी में
तुम हमारा
हम तुम्हारा
साथ चाहते हैं।
दुआओं में
तू मेरे लिए
मैं तेरे लिए
रब से
मांगता हूं।
रब हमारे इस जज्बे को
सलामत रखना
उसका दिल मेरे पास
मेरा दिल उसके पास
अमानत रखना!
जब भी जरूरत पड़े
मांगने पर
तू अपनी हमारे लिए
जमानत रखना!
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¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »मो. मंजूर आलम ‘नवाब मंजूरलेखक एवं कविAddress »सलेमपुर, छपरा (बिहार)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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