
देहरादून। उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस के रजत जयंती उत्सव के मुख्य समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को एक छोटा-सा लेकिन अत्यंत प्रभावशाली कार्य कर देश को बड़ा संदेश दिया। जब मंच पर उन्होंने कॉफी टेबल बुक और डाक टिकट के विशेष कवर का लोकार्पण किया, तो इस दौरान उनका एक सामान्य-सा कदम स्वच्छता और अनुशासन का प्रतीक बन गया।
कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने मंच पर पहुंचकर उत्तराखंड की यात्रा और विकास यात्रा पर आधारित कॉफी टेबल बुक तथा रजत जयंती के अवसर पर जारी किए गए डाक टिकट के विशेष कवर का शुभारंभ किया। जैसे ही उन्होंने लांचिंग के समय दोनों वस्तुओं से लिपटे रिबन को हटाया, उन्होंने उसे इधर-उधर रखने के बजाय सावधानीपूर्वक उठाया और सीधे अपनी जेब में रख लिया।
यह दृश्य मामूली प्रतीत हो सकता था, लेकिन इसके पीछे जो संदेश था, वह गहरा था — “स्वच्छता केवल शब्द नहीं, बल्कि व्यवहार का हिस्सा होनी चाहिए।” प्रधानमंत्री के इस छोटे-से कदम ने यह स्पष्ट कर दिया कि स्वच्छता की संस्कृति केवल अभियान या सरकारी कार्यक्रमों से नहीं, बल्कि व्यक्तिगत जिम्मेदारी और आचरण से शुरू होती है।
मंच पर मौजूद अधिकारी और अतिथि कुछ क्षणों के लिए आश्चर्यचकित रह गए, परंतु दर्शकों ने तालियों से प्रधानमंत्री के इस व्यवहार की सराहना की। सोशल मीडिया पर भी प्रधानमंत्री मोदी की यह झलक वायरल हो गई, जिसमें लोग उनके व्यवहार को ‘प्रेरणादायक’ बता रहे हैं। कई उपयोगकर्ताओं ने लिखा कि प्रधानमंत्री का यह एक कदम स्वच्छ भारत मिशन के संदेश को फिर से जीवंत कर गया।
प्रधानमंत्री ने इससे पहले अपने भाषण में भी उत्तराखंड की स्वच्छता और पर्यावरण-संरक्षण की परंपरा की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि देवभूमि का हर नागरिक अपने परिवेश को साफ-सुथरा रखकर देश को एक आदर्श प्रस्तुत करता है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि “छोटे कदम, बड़े बदलाव की दिशा तय करते हैं।”
उत्तराखंड सरकार ने रजत जयंती उत्सव के इस आयोजन में प्रदेश की उपलब्धियों को प्रदर्शित किया, और प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में राज्य की जनता की दृढ़ता, त्याग और पर्यावरणीय जागरूकता को सलाम किया। लेकिन समारोह की सबसे चर्चा योग्य बात वही रही — वह छोटा-सा क्षण, जब प्रधानमंत्री ने रिबन को ज़मीन पर न रखकर अपनी जेब में डाल लिया।
यह न केवल उनके व्यक्तिगत अनुशासन और स्वच्छता के प्रति सजगता का उदाहरण था, बल्कि पूरे देश के लिए एक व्यवहारिक सीख भी। इसने यह सिद्ध कर दिया कि ‘स्वच्छ भारत’ केवल नारा नहीं, बल्कि जीवन शैली है — और परिवर्तन की शुरुआत स्वयं से होती है।





