
- राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय मालदेवता रायपुर में बौद्धिक संपदा अधिकार पर एकदिवसीय व्याख्यान सत्र आयोजित
- आईपीआर सेल के तहत तीसरा और चौथा ऑनलाइन लेक्चर सीरीज सम्पन्न
- प्रो. महिपाल सिंह और डॉ. हिमांशु गोयल ने दिए महत्वपूर्ण व्याख्यान
- फिल्म पायरेसी, ट्रेडमार्क, पेटेंट और कॉपीराइट पर विस्तृत चर्चा
- प्रदेश के विभिन्न महाविद्यालयों के प्राध्यापक ऑनलाइन माध्यम से रहे शामिल
देहरादून। राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय मालदेवता, रायपुर में आज 25 नवंबर 2025 को बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Rights – IPR) विषय पर एक महत्वपूर्ण एकदिवसीय ऑनलाइन व्याख्यान सत्र का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम महाविद्यालय के आईपीआर सेल के अंतर्गत आयोजित तीसरे और चौथे लेक्चर सीरीज का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य छात्रों और प्राध्यापकों को बौद्धिक संपदा अधिकारों की अवधारणा, महत्व और व्यावहारिक उपयोग के बारे में व्यापक जानकारी प्रदान करना था। कार्यक्रम का शुभारंभ महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य प्रो. एम. एस. पंवार द्वारा किया गया।
उन्होंने अपने उद्बोधन में बौद्धिक संपदा अधिकारों की आवश्यकता और तेजी से बदलते वैश्विक परिवेश में इनके बढ़ते महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आज ज्ञान, नवाचार और रचनात्मकता ही असली पूंजी है, और ऐसे में आईपीआर को समझना अत्यंत जरूरी है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. श्रुति चौकियाल ने कुशलतापूर्वक किया। कार्यक्रम को दो मुख्य सत्रों में विभाजित किया गया था। पहले सत्र के मुख्य वक्ता प्रो. महिपाल सिंह, भौतिक विज्ञान विभाग, राजकीय महाविद्यालय काशीपुर ने बौद्धिक संपदा अधिकारों के प्रकार, संरचना और महत्व पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने पेटेंट, ट्रेडमार्क, कॉपीराइट और डिज़ाइन जैसे प्रमुख अधिकारों को सरल भाषा में समझाते हुए बताया कि कैसे यह किसी भी आविष्कार, शोध या रचनात्मक कार्य की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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उन्होंने कहा कि आईपीआर न केवल सृजनात्मकता को प्रोत्साहित करता है, बल्कि समाज और उद्योग जगत में नवाचार को भी बढ़ावा देता है। दूसरे सत्र में मुख्य वक्ता डॉ. हिमांशु गोयल, साइंटिस्ट ‘यू’, कास्ट, ने अत्यंत रोचक उदाहरणों के माध्यम से आईपीआर का ऐतिहासिक संदर्भ प्रस्तुत किया। उन्होंने महाभारत के एकलव्य और द्रोणाचार्य का उदाहरण देते हुए समझाया कि ज्ञान और कौशल का संरक्षण मानव सभ्यता की शुरुआत से ही एक महत्वपूर्ण तत्व रहा है। उन्होंने विभिन्न प्रकार के आईपीआर जैसे ट्रेडमार्क, पेटेंट, कॉपीराइट और इंडस्ट्रियल डिज़ाइनों का व्यावहारिक विवरण देते हुए बताया कि फिल्म पायरेसी जैसे मामलों में कानूनी दंड, विशेषकर अर्थदंड, का स्पष्ट प्रावधान है।
उन्होंने फिल्म मिशन मंगल का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे पायरेसी किसी भी रचनात्मक कार्य को गंभीर रूप से प्रभावित करती है। कार्यक्रम में महाविद्यालय के प्राध्यापकों के साथ-साथ प्रदेश के अन्य महाविद्यालयों के शिक्षक भी ऑनलाइन माध्यम से जुड़े और चर्चा में सक्रिय रूप से भाग लिया। आईपीआर सेल की टीम में डॉ. कविता काला, डॉ. डिंपल भट्ट, डॉ. सुमन सिंह गुसाईं, डॉ. उमा पपनोई, और डॉ. लीना रावत सहित कई सदस्य उपस्थित रहे, जिन्होंने कार्यक्रम के सुचारू संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कार्यक्रम के समापन पर प्रभारी प्राचार्य प्रो. एम. एस. पंवार ने मुख्य वक्ताओं, आयोजन समिति, सभी प्राध्यापकों तथा छात्र-छात्राओं का आभार व्यक्त किया।
उन्होंने कहा कि इस प्रकार के बौद्धिक और जागरूकता आधारित कार्यक्रम विद्यार्थियों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए सक्षम बनाते हैं और उन्हें नई संभावनाओं के प्रति सजग करते हैं। महाविद्यालय प्रशासन ने भविष्य में भी ऐसे शैक्षणिक कार्यक्रम जारी रखने की प्रतिबद्धता जताई।





