
- मुनिकीरेती में रंजिश से हत्या, विवादित शराब ठेका फिर चर्चा में
- पुलिस सुरक्षा में चल रहे शराब ठेके पर सवाल
राज शेखर भट्ट
देहरादून, उत्तराखंड
देहरादून। उत्तराखंड राज्य स्थापना की रजत जयंती (25वीं वर्षगांठ) के अवसर पर जहां सरकार पूरे उत्साह के साथ जश्न मना रही है, वहीं एक तस्वीर ने पूरे प्रदेश के संवेदनशील नागरिकों को झकझोर दिया है। शहर के बीचोबीच लगाए गए रजत जयंती के विशाल बैनर के नीचे एक बेबस व्यक्ति फुटपाथ पर सोया नजर आया। यह दृश्य विकास और सामाजिक असमानता के बीच की गहरी खाई को उजागर करता है। तस्वीर में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और अन्य नेताओं के चेहरे चमकते हैं, जो प्रदेशवासियों को “सशक्त, समृद्ध और आत्मनिर्भर उत्तराखंड” की शुभकामनाएं दे रहे हैं।
उसी पोस्टर के नीचे एक नागरिक भूख, गरीबी और बेबसी के साए में रात काट रहा है। यह विरोधाभास उस राज्य की सच्चाई को बयां करता है, जो 25 साल बाद भी अपने मूल उद्देश्यों — समान अवसर, सामाजिक न्याय और जनकल्याण से दूर खड़ा दिखता है। हो सकता है कि वह सोया हुआ इनसान शराबी हो और शराब के बेहिसाब नशे में वहां सोया हो। अब यहां यह सवाल उठता है कि देवभूमि में इतनी मदिर मिलना भी तो सही नहीं है, लेकिन जब मदिरालयों की सुरक्षा पुलिस करने लगे तो फिर शराबी प्रजाति के लोंगों को लिए भला कौन क्या कह सकता है। मुख्यमंत्री महोदय को शराब के ठेके से कोई परेशानी नहीं है तो शराबियों को क्या फर्क पड़ेगा, वो तो आराम से आपके बोर्ड की छांव में सोयेंगे।
स्थानीय लोगों के मुताबिक, राजधानी के कई हिस्सों में यही हालात हैं। मजदूर, बेघर और वंचित वर्ग अब भी फुटपाथों पर जीवन काट रहे हैं। एक राहगीर ने तंज भरे लहजे में कहा — “ऊपर बधाई लिखी है, नीचे बेबसी सो रही है — यही है हमारे राज्य की असली तस्वीर।” इसी के साथ, हाल ही में मुनिकीरेती में चल रहे शराब ठेके के विवाद ने भी सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बताया गया है कि स्थानीय विरोध के बावजूद जिस शराब के ठेके को जनता ने कई बार बंद करने की मांग की, वही ठेका पुलिस सुरक्षा में संचालित किया जा रहा है। स्थानीय निवासियों और महिला समूहों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि “धामी सरकार की पुलिस जहां आम जनता की समस्याओं को सुनने में नाकाम है, वहीं शराब कारोबार की रखवाली कर रही है।”
मुनिकीरेती के इस ठेके को लेकर इलाके में कई बार विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं। लोगों का कहना है कि यह ठेका धार्मिक और पर्यटन क्षेत्र के माहौल को बिगाड़ रहा है। बावजूद इसके, पुलिस बल की मौजूदगी में ठेका खुला रहने से सरकार की प्राथमिकताएं सवालों में हैं। एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, “जब जनता अपनी आवाज उठा रही है, तो उसे नजरअंदाज करना लोकतंत्र के साथ अन्याय है। यह वही प्रदेश है जो नशामुक्त समाज के संकल्प के साथ बना था।” राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर यह तस्वीरें और घटनाएं सरकार के ‘विकास मॉडल’ की जमीनी सच्चाई उजागर करती हैं।
जहां एक ओर बड़े मंचों से ‘रजत जयंती’ का शोर है, वहीं दूसरी ओर जनता अपनी समस्याओं से अकेली जूझ रही है — कोई फुटपाथ पर सोने को मजबूर है, तो कोई अपने शहर के चरित्र को बचाने के लिए शराब ठेकों के खिलाफ लड़ रहा है। इस पूरे परिदृश्य ने उत्तराखंड की आत्मा से जुड़े उस मूल प्रश्न को फिर जीवित कर दिया है — क्या यह वही राज्य है जिसके लिए आंदोलनकारियों ने बलिदान दिए थे? या फिर यह सिर्फ पोस्टरों और भाषणों में सीमित रह गया एक स्वप्न है?





