साहित्य लहर
विधायक जी के चमचे
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
जैसे ही विधायकजी का टिकट कटने की खबर सामने आई । उनके चमचे उन्हें छोड़- छोड़कर ऐसे भागने लगे जैसे भैंस के मृत पाडे़ से किलौली (खून चूसने वाले कीड़े) भागने लगते हैं ।
विधायक जी एक- एक करके अपने चमचों से संपर्क साध रहे थे और चमचे विरोधी प्रत्याशी से । विधायक जी ने अपने सबसे प्रिय चमचे को फोन मिलाया, उसने भी बाकी चमचों की तरह ही मुंह फेर लिया । विधायक जी दीवार पर सिर मारकर बुदबुदाये ।
‘इस ससुरे को अपना छोटा भाई माना मैंने, रात -दिन इसको साथ रखा । इसका हर अच्छा- बुरा काम करवाया । ससुरे को टॉप का दलाल बनाया और जब आज मुझे जरूरत पड़ी तो सबके सब भाग गये ।’
बेचारे विधायक जी अपना सिर धुन रहे थे और उनके पुराने चमचे नये विधायक प्रत्याशी के यहां दावतें उड़ा रहे थे ।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »मुकेश कुमार ऋषि वर्मालेखक एवं कविAddress »ग्राम रिहावली, डाकघर तारौली गुर्जर, फतेहाबाद, आगरा, (उत्तर प्रदेश) | मो : 9876777233Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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