शान्ति का दूत : स्व0 लाल बहादुर शास्त्री

सुनील कुमार माथुर
भारत की भूमि वीरों की भूमि रही हैं । भारत की जनता ने देश की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहकर देश की रक्षा की और जरूरत पडने पर अपने प्राणों की आहुति भी हंसते हंसते दी और देश की एकता-अखंडता व सम्प्रभुता को सदैव बनाये रखा । इन्हीं वीरों में सादा जीवन और उच्च विचारों के धनी स्व0 लाल बहादुर शास्त्री का नाम भी बडी श्रद्धा के साथ लिया जाता हैं ।
शास्त्री जी ने देश की एकता-अखंडता व सम्प्रभुता की रक्षा के लिए अपने को सुरक्षा की पहली पंक्ति में हर वक्त खडे रखा । वे भले ही नाटे कद के थे लेकिन वे बडे ही साहसी , कर्मठ , देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत व्यक्तित्व के धनी थे राष्ट्र के प्रति उनका इतना मोह था कि वे देश की रक्षा की खातिर अनेक बार जेल गयें ।
घर परिवार में नाना प्रकार की समस्याएं मुंह बाये खडी थी व घर – परिवार को ऐसे समय शास्त्री जी की नितान्त जरूरत थी । मगर उन्होंने देश की सुरक्षा की खातिर घरेलू परेशानियों को नजर अंदाज कर दिया और देश की सुरक्षा को प्राथमिकता दी । चूंकि वे एक सच्चे देशभक्त थे । वे सरलता व नम्रता की प्रतिमूर्ति थे । वे कलम के सिपाही होने के साथ ही साथ देश की सीमा पर रहकर देश की रक्षा करने वाले जवानों और सर्दी , गर्मी व वर्षा की अनदेखी कर देश की जनता के लिए अन्न पैदा करने वाले किसानों का हौसला बढाने के लिए स्व0 लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान व जय किसान का नारा देकर किसानों व जवानों दोनों का मनोबल बढाया था जिसे देश की जनता आज भी श्रद्धा के साथ याद करती हैं ।
वे 1926 में लोक सेवक मंडल के आजीवन सदस्य बनें । सत्याग्रह में 1930 में उन्हें दो वर्ष की जेल हुई वे 1935 में यू पी कांग्रेस के महासचिव बने व 1937 में यू पी की विधानसभा के सदस्य बनें । शास्त्री को 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में तीन साल की सजा हुई थी । वे 1947 में यू पी पुलिस व परिवहन विभाग के मंत्री बनें ।
1965 में वे कांग्रेस के महासचिव बने । 1952 में केन्द्र में रेल्वे व परिवहन मंत्री बनें । तब एक छोटी सी रेल दुर्घटना के बाद अपने पद से त्याग पत्र दे दिया । 1957 में वे केन्द्र में परिवहन व संचार मंत्री बनाये गयें । अप्रैल 1961 में पंत की मृत्यु के बाद गृह मंत्री बनें । वे 1964 में कांग्रेस संसदीय दल के नेता निर्वाचित हुए । जून 1964 में योजना कमीशन के चेयरमैन बनें ।
15 अगस्त 1964 को राष्ट्रीय ध्वज फहराया व 8 अक्तूबर 1964 को तटस्थ देशों के सम्मेलन में विश्व शान्ति के लिए भाषण दिया और शांति के लिए पांच सूत्री कार्यक्रम प्रस्तुत किया । 12 अक्तूबर 1964 को करांची में अय्यूब से बातचीत की । छब्बीस अक्तूबर को मुख्यमंत्रियो के सम्मेलन में भाषण दिया एवं मुनाफाखोरों के लिए कठोर व्यवस्था पर जोर दिया ।
12 मई1965 को रूस की आठ दिवसीय यात्रा पर मास्को गयें । तीन जनवरी 1966 को अय्यूब खां से बातचीत करने के लिए ताशकंद गयें । दस जनवरी को ऐतिहासिक ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर किये । दस जनवरी 1966 की आधी रात व्यतीत होने के डेढ घंटे बाद ही यानि 11 जनवरी को प्रातः 1 – 32 पर हृदय गति रूक जाने से शास्त्री जी का आकस्मिक निधन हो गया ।
शास्त्री जी के निधन के समाचार सुनते ही देश भर में शोक की लहर फैल गयी । उनके निधन से देश को जो क्षति हुई उसकी पूर्ति करना असम्भव है । वे न केवल भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री ही थे , अपितु स्वतंत्र भारत के एक कुशल कूटनीतिज्ञ , गरिमामयी प्रशासक, शांति का दूत , सरलता व नम्रता की प्रतिमूर्ति, सच्चा इंसान, अन्तराष्ट्रीय सौहार्द को सुदृढ बनाने वाला व्यक्ति खो दिया ।
उन्होंने सदैव मानव कल्याण व उत्थान के लिए कार्य किया । आपको मरणोपरांत भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किया गया । वे वादे के पक्के थे । वे बडे ही स्वाभिमानी थे । कभी भी किसी के आगे झुके नहीं, टूटे नहीं । कभी भी सिध्दांतों से समझौता नहीं किया उनका रहन – सहन , खानपान, आचार-व्यवहार सभी कुछ साधारण था । उनको सच्ची श्रद्धाजंलि यहीं है कि हम उनके सपनों को साकार करने का प्रयत्न करें.
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »सुनील कुमार माथुरस्वतंत्र लेखक व पत्रकारAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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