साहित्य लहर
इल्तज़ा
प्रेम बजाज
प्यार का चिराग दिल में जला कर रखते हैं,
भूले से तुम ढूंढ लो घर मेरा आस लगाए रखते हैं।
रहो ग़ैर के बन कर बेशक तुम मगर रूह मेरी रहे,
करो प्यार रकीबो से, मगर तेरी मोहब्बत मेरी रहे।
यूं जला कर के हमें, शमां की तरह जलाए जा रहे हो,
हमारे सामने हंस-हंसकर रकीबो को गले लगा रहे हो।
है इल्तज़ा तुमसे बस इतना सा मेरा काम कर दो ,
दिल में मेरे बस कर तुम मुझे प्रेम करना सिखा दो।
मौत पर यकीं नहीं मुझे ना जाने कब आ जाए,
मगर तुम पर यकीं है तुम मौत से पहले आओगे ।
किस तरह यकीं दिलाएं हम तुमसे मोहब्बत करते हैं,
तेरे दिए हुए ज़ख्मों पर हम मरहम कांटों से लगाते हैं ।
कहो तो सरेआम ऐलान कर दे, दिल तुम्हारे नाम कर दें,
मरने के बाद ना जलाना आंखें,वसीयत आखिरी बार दें।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »प्रेम बजाजलेखिका एवं कवयित्रीAddress »जगाधरी, यमुनानगर (हरियाणा)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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