भक्ति हो तो मीरा जैसी
सुनील कुमार माथुर
भारत की भूमि ऋषि-मुनियों , तपस्वियों व धर्मप्रेमी , साधु संतों की भूमि हैं । भक्ति , शक्ति , त्याग और बलिदान करने वालों की पावन धरा है । राजस्थान की भूमि भी सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है । संत भक्तों , कवियों में भक्त शिरोमणि मीरा बाई का नाम सर्वोच्च है । इसी कारण जनमानस उनके प्रति अपनी श्रध्दा और सम्मान को पूर्ण भक्ति भाव से प्रदर्शित करता है।
मीराबाई का जन्म मेडतासिटी जिला नागोर राजस्थान में हुआ । वे अपने जीवन काल में ही एक भक्त के रूप में अत्यन्त लोकप्रिय हो गई थी । उन्हें साधु संगत अत्यन्त प्रिय थी । अपनी भक्ति के पथ पर आगे बढते हुए उन्होंने भक्ति का डंका बजाया । मीरा ने विष का प्याला प्रभु का प्रसाद समझकर पी लिया परन्तु उनका बाल भी बांका नहीं हुआ।
मीरा बाई संत भक्तों को पिता समान मानकर आदर – सम्मान देती थी । उनके वहां भक्त निरन्तर बने रहते थे । उन्होंने अपने आपकों किसी साम्प्रदायिक दायरे में बाधने कभी भी पसंद नहीं किया । वे तो मेडता में रहते हुए बाल्यकाल में ही भक्ति के रंग में रंग चुकी थी । उनकी भक्ति को देखकर आज भी लोग कहते है कि भक्ति हो तो मीरा जैसी हो । मीराबाई का मंदिर राजस्थान के नागौर जिले के मेडतासिटी में स्थित है जो विश्व विख्यात है।
मीराबाई का यह जग प्रसिद्ध मंदिर श्री चारभुजा नाथ मंदिर के प्रांगण में स्थित है । इसीलिए यह मंदिर श्री चारभुजा नाथ एवं मीरा बाई के मंदिर के नाम से जाना जाता हैं । इस मंदिर के पास ही मीरा स्मारक है जहां मीरा बाई के जीवन को बहुत ही सुंदर ढंग से दर्शाया गया है । जो भक्त मीराबाई के दर्शन करने मेडतासिटी आता है वह मीराबाई का स्मारक देखे बिना नहीं रह सकता हैं और जिसने स्मारक का अवलोकन नही किया समझों उसका मेडतासिटी आना कोई मायने नहीं रखता हैं।
मीरा स्मारक का अवलोकन करने पर भक्त शिरोमणि मीरा के व्यक्तित्व की अनुभूति होती है चूंकि मीरां प्रेम का मानवीय अवतार थी । वहीं दूसरी ओर अब तक पढा – सुना उसके बारें में यहां आने पर प्रमाण मिलता है । मीरा के विभिन्न तरह के चित्र और कृष्ण की भक्ति देखकर हृदय गद् गद् हो जाता है और यहां की साफ सफाई व सौन्दर्य देखकर ऐसा लगता है कि कहीं स्वर्ग है तो यहीं हैं ।
मीरा स्मारक की बाहरी व आन्तरिक सजावट देखने के बाद वहां से हटने को मन ही नहीं करता है और स्वर्ग से आनंद की अनुभूति होती है । स्मारक में मीरा की मूर्तियां व पेंटिग्स देखकर इस बात का आभास होता हैं कि मानों मीरा बाई कह रही हैं कि मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों ना कोई।
शांत वातावरण भक्तिमय लगता है और यहां का वातावरण देखकर वापस जाने को मन नहीं करता है यहां आने पर मीराबाई व उनके आराध्य कृष्ण के दर्शन होते है । इतना ही नहीं मन में बार – बार यही विचार आते है कि कृष्ण को पाने के लिए मीरा जैसी भक्ति करनी होगी।
मीरा स्मारक देखकर न केवल आनंद की असीम अनुभूति होती है अपितु मीरा स्मारक में भक्ति से ओतप्रोत दुर्लभ स्मृतियां यहां संजोई हुई है जो भक्ति भाव व भक्त की अमर प्रेम को संजोएं हुए है। ऐतिहासिक दृष्टि से मीरा स्मारक अत्यन्त महत्वपूर्ण है एवं इसे विश्व स्तरीय ख्याति दिलाने के लिए हर संभव प्रयास किये जाने चाहिए।
स्मारक की साफ सफाई देखकर लगता हैं कि यहां का स्टाफ कितना सौंदर्य प्रेमी है। स्मारक परिसर में समय – समय पर भक्ति से ओत-प्रोत सांस्कृतिक कार्यक्रम , साहित्यिक गोष्ठियों का भी नियमानुसार आयोजन किया जाता है।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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