कविता : आदत है मुझे उजाले में भी सोने की
आदत है मुझे उजाले में भी सोने की, मैंने सिर्फ हाले दिल ही तो पूछा है। वे वजह आंखें दिखाते किस लिए हो। बात हमारी हमारे बीच रहे तो ठीक। राई का पहाड़ बनाते किस लिए हो। सुदेश दीक्षित की कलम से…
बात खुल कर कहो शरमाते किस लिए हो।
हम समझते हैं फिर समझाते किस लिए हो।।
मैंने सिर्फ हाले दिल ही तो पूछा है।
वे वजह आंखें दिखाते किस लिए हो।।
बात हमारी हमारे बीच रहे तो ठीक।
राई का पहाड़ बनाते किस लिए हो।।
चले जाना है सभी को यहां से एक दिन।
भला ना हक दिल दुखाते किस लिए हो।।
आदत है मुझे उजाले में भी सोने की।
मजार पे आ दीया बुझाते किस लिए हो।।
मान तुम मुंसिफ हो दिले अदालत के।
वे गुनाह,वे कशूर को डराते किस लिए हो।।
भारत गौरव अवार्ड से सम्मानित हुए विश्वप्रसिद्ध जादूगर अमर सिंह
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