बैरंग जिन्दगी का सपना हूं मैं…

राजेश ध्यानी “सागर”
बैंरंग जिदंगीं का
सपना हूं मैं ,
दिखता तो सब है
फिर भी ,
अकेला हूं मैं ।
संघर्ष की ज्योंति बना
जलता रहा ,तपता रहा
फिर भी अंधेंरे मे ,
अकेला हूं ।
इक आस के लिये
जोडें थे सपनें
इक आस के लिये
बुने थे सपने ,
उसके लिये भुलाया
खुद को वो
मुस्कुरा रही आज
क्योंकि मैं ,
अकेला हूं ।
क्यूं लालच में
तेरे पड़ा
क्यूं सपने तेरे संज़ोये ।
जैसे तू बढती गयीं ,
मैं सीना तान खड़ा ,
मैं अभागा जान न सका
सींने में पांव
रखा है उसने
अब इतनी ताकत कहां
हटा सकता नहीं ,
क्योंकि मैं
अकेला हूं।
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¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »राजेश ध्यानी “सागर”सम्पादक, काफ़ल एवं कविAddress »144, लूनिया मोहल्ला, देहरादून (उत्तराखण्ड) | सचलभाष एवं व्हाट्सअप : 9837734449Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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