हास्य-व्यंग्य : पैसे पेड पर नहीं उगते
सुनील कुमार माथुर
रविवार का दिन था। लेखक महोदय सवेरे-सवेरे अपने मकान की बालकनी में बैठे चाय पी रहें थे तभी उनकी निगाहें एक पत्रकार पर पडी । वह घर – घर अखबार बांट रहा था । लेखक महोदय को यह देखकर बडा ही आश्चर्य हुआ । उन्होंने पत्रकार महोदय को आवाज लगाई और पूछा, पत्रकार बंधु ! मै यह क्या देख रहा हूं। आप पत्रकार होकर घर-घर अखबार बांट रहे हो।
पत्रकार ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा- मेरे प्यारे लेखक महोदय समय बडा खराब आ गया हैं । कोरोना काल क्या आया लोगों की जिन्दगी बर्बाद कर दी । पहले लम्बे समय तक लाॅक डाउन चला । सभी लोग अपने – अपने गांव व शहर लौट गयें । मशीनमैन व कम्प्यूटर ऑपरेटरों के अभाव में प्रकाशन कुछ समय के लिए रोकना पडा।
अब लाॅक डाउन खुला और कामकाज कुछ सुचारू हुआ तो ग्राहकों ने यह कहकर पैसा रोक दिया कि अखबार बराबर नहीं आता हैं । पैसे किस बात के । आखिर करे तो क्या करें मुझे ही पत्रकार से पोस्टमैन बनकर घर – घर अखबार बांटने पड रहें हैं । चूंकि पैसे कोई पेड पर नहीं उगते हैं । पैसे कमाना आसान नहीं है।
हम जो ठहरे जन्मजात लाला हरीशचंद्र की औलाद । बेईमानी हमसे होती नहीं । हराम का पचता नहीं । हेराफेरी , भ्रष्टाचार, लोभ लालच व चार सौ बीसी होती नहीं । हम बडे अखबार वाले तो हैं नहीं की किसी की खटिया खडी कर सकें उसके लिए राजनेताओं को चंदा देना पडता हैं । उनकी हां में हां मिलानी पडती हैं । अगर रचनात्मक व मिशनरी पत्रकारिता करनी हैं तो भूखों तो मरना ही पडेगा।
आज वे पत्रकार ही मलाई खा रहें है और नोटों के बीच खेल रहें है जिन पर राजनेताओं का हाथ हो । हमें तो दो वक्त की रोटी की खातिर यह सब करना पड रहा हैं । पत्रकार होकर पोस्टमैन का कार्य बस यहीं सोचकर कर रहें है कि कोई कार्य छोटा नहीं होता हैं एवं पैसे पेड पर नहीं उगते हैं।
आप लेखक महोदय है । आपके बडे आराम हैं । घर में बैठे – बैठे लिखने के लिए मसाला जुटा लेते हैं और कलम के जरिये शब्दों की सुनहरी माला पिरोकर पाठकों का मन जीत लेते हो और एक हम हैं जो पाठकों की पीडा को समझते हुए घर – घर अखबार पहुंचा कर मिशनरी पत्रकारिता के नाम पर घर फूंक तमाशा देख रहें है। अगर यही समय विज्ञापन एकत्र करने में लगाता तो शायद कुछ दो पैसे की आमदनी होती । लेकिन हमारे लिए तो पाठक ही सर्वोपरि है।
लेखक महोदय उन पत्रकार महोदय की सच्चाई को सुनकर मन ही मन सोचने लगे कि वास्तव में देश व समाज का सजग प्रहरी ऐसे लोग ही होते हैं । इनके जज्बे को सलाम हैं जो सर्दी , गर्मी व वर्षा की चिंता किये बिना अपने पाठको को कितना महत्व देते हैं।
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