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साहित्य लहर

ख़्यालों में बनती है गज़ल

प्रेम बजाज

तुम आते हो जब ख्यालों में तो बनती है गज़ल,
चले जाते हो छोड़कर तब यही खलती है गज़ल।

तुम सो जाओ मेरे पहलू में मैं गुनगुनाऊं तुम्हें,
धीरे-धीरे संग मेरी सांसों के भी चलती है गज़ल।

जब ना करूं ज़िक्र तुम्हारा किसी मिसरे में तो,
नहीं बन पाती मुझे बेहिसाब चलती है गज़ल।

दिल के कूचे से निकलता है धुआं अरमानों का,
अश्रु बन पहुंचता है तो पलकों में पलती है ग़ज़ल।

जब तुम मिलाओ अपना क़ाफिया मेरे रदीफ से,
तब जाकर प्रेम से पूरी तरह संभलती है गज़ल।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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From »

प्रेम बजाज

लेखिका एवं कवयित्री

Address »
जगाधरी, यमुनानगर (हरियाणा)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

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