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साहित्य लहर

घनश्याम

कविता नन्दिनी

एक अनोखा इस दुनिया में
श्याम ! तुम्हें ही पाया है
तेरा है हर रूप निराला
सब के मन को भाया है।

बाल रूप में नटखट मोहन !
तुम चंचल मतवाले हो
नन्द के लाला! संग में ग्वाला
मोहक मुरली वाले हो

कभी बने तुम ! किशन-कन्हैया
कभी बने तुम ! माखनचोर
कान्हा ! बजा-बजा कर बंशी
सबको करते रहे विभोर

राधा के संग प्यार अमर है
और सभी के तुम घनश्याम
लीलाधर तो एक तुम्हीं हो
जिसके हैं बहुतेरे नाम

ग्वालों का सम्मान तुम्हीं से
गोपी का अरमान तुम्हीं !
माताएँ देवकी-यशोदा
उनका हर अभिमान तुम्हीं !

भारत में अर्जुन ने तुमसे
कर्मयोग को पाया है
ज्ञानी-जन ने ज्ञान योग को
तुम से ही अपनाया है।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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From »

कविता नन्दिनी

कवयित्री

Address »
सिविल लाइन, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

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