साहित्य लहर

कयामत तलक माँ की दुआओं का साथ रहना

सिद्धार्थ गोरखपुरी

बचपने से सबको खुश कर देना और जवां होना।
बस उँगलियों के इशारों से ,सब कुछ बयां होना।

कयामत तलक माँ की दुआओं का साथ रहना,
कितना कठिन होता है ना? माँ होना।

धूल में खेलकर, देह और कपड़े को गंदा कर देना।
शैतानियों से माँ के जरूरी काम को ,मन्दा कर देना।

याद है न मैले -कुचैटे कपड़ो का नया होना।
कितना कठिन होता है ना? माँ होना।

याद है? अपनी इच्छाओं को माँ के ऊपर, थोप दिया करते थे।
इन्हें पूरा करने के अटल इरादों में ,झोंक दिया करते थे।

बेजान अंधेरे रास्तो पर माँ का समा होना।
कितना कठिन होता है ना? माँ होना।

तेरी यादें ले जाती है मुझे तन्हाइयों से दूर।
दुनिया की बेबुनियाद रुसवाईयों से दूर।

बस परेशान हूँ पर बदला नहीं हूँ माँ,
तूँ सोचती है ना? मेरा क्या से क्या होना।
कितना कठिन होता है ना? माँ होना।

Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

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