भक्ति उतनी ही कीजिए जितनी शक्ति हो
सुनील कुमार माथुर
व्यक्ति को भक्ति उतनी ही करनी चाहिए जितनी शक्ति हो चूंकि प्रभु अपने भक्तों को कभी भी कष्ट में नहीं देख सकतें है जब कोई सच्चा भक्त कष्ट में हो तो प्रभु खुश कैसे रह सकते हैं अतः भक्त को अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही भक्ति करनी चाहिए । अपने शरीर को कष्ट में डालकर भक्ति करने से भगवान कभी भी खुश नहीं होते हैं । अतः भक्त को भक्ति के नाम पर कभी भी अपने आपको कष्ट नहीं देना चाहिए । हमेशा सकारात्मक सोच रखें व अपनी सोच बडी रखें ।
हमेशा कानून कायदों का पालन करें न कि उल्लघंन…
अपनें धर्म का पालन करें और दूसरों के धर्म का सम्मान करें किसी के भी धर्म पर अनावश्यक टीका टिप्पणी न करें और न ही किसी की भावना को ठेस पहुंचाने का प्रयास करें । जो भी संकल्प ले उसका पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ पालन करना चाहिए एवं उसे पूरा करना चाहिए । कभी भी ऐसा कोई कृत्य न करे जिससे दूसरों को कष्ट हो , पीडा हो , उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचे । सदैव मानवीय मूल्यों को बनाये रखें ।
हमेशा कानून कायदों का पालन करें न कि उल्लघंन । नारी जाति का सम्मान करें । जिस घर – परिवार , समाज व राष्ट्र में नारी का अपमान हो वहां देवता कैसे निवास कर सकते हैं ऐसे घर – परिवार व समाज व राष्ट्र हमेशा पतन के गर्त में ही जाता हैं जहां नारी का अपमान होता हो । हमेशा नारी का मान सम्मान करें व आदर की दृष्टि से देखें । अपने से बडी आयु की नारी को मां व बहन का दर्जा दे व अपनी आयु व अपने से कम आयु की नारी व कन्या को बहन का दर्जा दे ।
कोई भी व्यक्ति हमारा शत्रु या मित्र बनकर इस संसार में नहीं आता…
हमारे शास्त्रों में भी कहा गया हैं कि जहां नारी का मान सम्मान होता हैं वहीं देवताओं का वास होता हैं । चूंकि नारी गृह लक्ष्मी होती हैं । अतः लक्ष्मी का कभी भी अपमान नहीं करना चाहिए । अगर आपके पास ऐसे कपडे व जूते – चप्पल हैं जो आप अब नहीं पहनते है और ऐसी किताबें हैं जो आप अब नहीं पढते है तो किसी जरूरतमंद को देकर उसकी मदद कीजिए । आपका यह नेक कृत्य ही ईश्वर की सच्ची भक्ति हैं । ईश्वर तो अपने भक्तों के प्रेम के भूखें हैं ।
अगर आप प्रसन्न हैं तो ईश्वर भी प्रसन्न हैं और आप दुःखी हैं तो ईश्वर भी दुखी हैं । वो कभी भी नहीं चाहता हैं कि उसका कोई भक्त दुःखी हो । परेशान हो । संकट में हो । जो ईश्वर की सच्ची भक्ति करता हैं ईश्वर उसका बेडा पार कर देता हैं कहने का तात्पर्य यह है कि भक्ति उतनी ही कीजिए जितनी आपके शरीर में शक्ति हैं । कभी भी शरीर को कष्ट देकर भक्ति न करें चूंकि इससे ईश्वर को भी पीडा होती हैं ।
भक्त को भक्ति के नाम पर कभी भी अपने आपको कष्ट नहीं देना चाहिए…
हमारे बडे बुजुर्गों , संतों व महापुरुषों का कहना हैं कि जन्म से रिश्ते तो प्रकृति की देन हैं लेकिन खुद के बनायें रिश्ते आपकी पूंजी हैं इसलिए इन्हें सहेज कर रखें । कोई आपकी सराहना करें या निंदा दोनों ही अच्छी बात हैं क्योंकि प्रशंसा प्रेरणा देती हैं और निंदा सावधान होने का अवसर । हद से ज्यादा सीधा होना भी ठीक नहीं है क्योकि जंगल में सबसे पहलें सीधे पेड ही काटे जाते हैं और टेडे मेडो को छोङ दिया जाता हैं ।
दौलत नहीं , शौहरत नहीं, ना वाह – वाह चाहिए, कहां हो ? कैसे हो ? दो लफ्जों की परवाह चाहिए । मन ऐसा रखों कि किसी को बुरा न लगें । दिल ऐसा रखो कि किसी को दुःखी न रखें । रिश्ता ऐसा रखों कि उसका अंत न हो । कोई भी व्यक्ति हमारा शत्रु या मित्र बनकर इस संसार में नहीं आता हैं हमारा व्यवहार व शब्द ही लोगों को मित्र व शत्रु बनाते हैं ।
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