कनिष्ठ लिपिकों को नोशनल परिलाभ देने की मांग

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सुनील कुमार माथुर

सेवानिवृत कनिष्ठ लिपिक सुनील कुमार माथुर ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को ज्ञापन भेजकर मांग की है कि कनिष्ठ लिपिक 1986 के बैच के जिन सफल अभ्यार्थियों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के करीबन सात साल बाद नियुक्ति दी है उन्हे उन से पहले नियुक्ति निम्नतर अभ्यार्थियों को नियुक्ति दिये जाने की तिथि से नोशनल परिलाभ दिये जायें ।

माथुर ने ज्ञापन में कहा है कि राजस्थान हाईकोर्ट ने मई 2022 को वर्ष 2017 की शिक्षक ग्रेड तृतीय ( लेवल ध्दितीय ) भर्ती में योग्य होने के बावजूद भी विलंब से नियुक्ति दिये जाने के मामले में याचिका कर्ताओं को नोशनल परिलाभ देने के निर्देश दिए हैं । निर्देश में कहा गया हैं कि नियुक्ति में विलंब के लिए नियोक्ता दोषी है जिसके चलते याचिकाकर्ताओं को योग्यता में उच्चतर होने के बावजूद भी नियुक्ति से वंचित कर दिया गया था , लेकिन उन्हें बाद में नियुक्ति दी गयी ।

एकल पीठ ने याचिकाकर्ताओं को उनके निम्नस्तर अभ्यार्थियों को नियुक्ति दिये जाने की तिथि से वरिष्ठता , सेवा में निरन्तरता , वेतन निर्धारण और वार्षिक ग्रेड वेतन वृध्दि जैसे नोशनल परिलाभ देने के निर्देश दिये थे । सेवानिर्वत कनिष्ठ लिपिक सुनील कुमार माथुर ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि ये तमाम लाभ उन कनिष्ठ लिपिकों को भी दिये जायें जिन्होंने 1986 में कनिष्ठ लिपिक की परीक्षा में उतीर्ण हो गये थे और सरकार ने इन्हेें नियुक्ति से वंचित रखकर कम अंक वालों को नियुक्ति दे दी ।

माथुर ने पत्र में कहा कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के 27 सितम्बर 1993 के फैसले के सात साल बाद सफल अभ्यार्थियों को नियुक्ति दी । अतः उपरोक्त एकल पीठ का निर्णय इन कनिष्ठ लिपिकों पर भी लागू होना चाहिए । चूंकि दोनों प्रकरण एक समान है व केवल पद नाम का अंतर है । इसलिए लोक कल्याणकारी सरकार होने के नाते उक्त फैसला 1986 के बैच के कनिष्ठ लिपिकों पर लागू कर उन्हें लाभ दिया जाये ।

माथुर ने पत्र में कहा कि एक ही प्रदेश में कर्मचारियों पर एक समान कानून ही लागू होता है । अतः इन लिपिकों को उनके लाभ से वंचित नहीं रखा जा सकता है।

ज्ञातव्य रहे कि राजस्थान लोक सेवा आयोग अजमेर द्धारा वर्ष 1986 में कनिष्ठ लिपिक संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा आयोजित की गयी थी । इस परीक्षा के बाद सरकारी सेवा में नियुक्ति के दौरान जमकर धांधली मची । बीकानेर में पदों की संख्या छः से बढाकर चार सौ आठ कर दी और वहां साढे सैंतीस प्रतिशत अंक लाने वाले अभ्यार्थियों को सरकारी सेवा में नियुक्ति दे दी और अन्य जिलों में साठ प्रतिशत अंक लाने वाले अभ्यार्थियों को सरकारी सेवा से वंचित कर दिया ।

तब सफल अभ्यार्थियों ने न्याय के लिए पहले हाईकोर्ट का ध्दार खटखटाया और फिर देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितम्बर 1993 को सफल अभ्यार्थियों के हक में फैसला दे दिया लेकिन इन सफल अभ्यार्थियों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के करीबन सात साल बाद अप्रैल – मई 2000 में नियुक्तियां दी गई लेकिन 27 सितम्बर 1993 से अप्रैल – मई 2000 तक की अवधि का कोई लाभ नहीं दिया ।

यह समय न तो सेवाकाल में जोडा गया और न ही इस समय का राज्य सरकार ने कोई हर्जाना ही दिया जिसके कारण अनेक अभ्यार्थियों को सरकारी सेवा के दौरान 9 – 18 – 27 का पूरा लाभ नही मिला चूंकि उनका सेवाकाल ही करीब- करीब 17 साल ही हुआ जिससे वे 18 – 27 के लाभ से वंचित रह गये वही कम सेवाकाल होने से उनकी पेंशन भी कम बनी जिसकी बजह से इन्हें दौहरी मार झेलनी पड रही हैं ।

अतः 27 सितम्बर 1993 से अप्रैल मई 2000 की अवधि का सरकार लाभ दिलाये ताकि पीडित पक्षकार को मानसिक व आर्थिक वेदना से मुक्ति मिलें और पीडित पक्षकार को उसका वाजिब हक मिल सकें।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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सुनील कुमार माथुर

स्वतंत्र लेखक व पत्रकार

Address »
33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

5 Comments

  1. निश्चित तौर पर कनिष्ठ लिपिकों के साथ अन्याय हुआ है । राजस्थान सरकार को इस विषय पर तत्काल सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को ध्यान में रखते हुए, पुनः विचार कर संबंधित कनिष्ठ लिपिकों की सेवा काल व नियुक्तियों को उन्हें लाभान्वित किया जाना चाहिए । राज्य के मुख्यमंत्री महोदय के इस संबंध में संबंधित अधिकारियों को तुरंत प्रभाव से निर्देश जारी कर आवश्यक सेवा लाभ देने की कार्यवाही करनी चाहिए । ताकि सेवा निवृत्त इन कनिष्ठ लिपिकों की पेंशन में लाभ मिल सके ।

    देवभूमि समाचारपत्र ने इस संबंध में विस्तृत समाचार प्रकाशित कर सराहनीय कार्य किया है ।

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