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आचार्यकुल के राष्ट्रीय प्रवक्ता सत्येन्द्र कुमार पाठक ने इस अधिवेशन को गांधी, विनोबा और जयप्रकाश नारायण की विचारधारा से प्रेरित रचनात्मक चिंतकों का एक महत्त्वपूर्ण वैश्विक समागम बताया। उन्होंने कहा कि यह आयोजन न केवल विचारों का संगम है, बल्कि दुनिया के सामने एक वैकल्पिक, शांतिपूर्ण और मानवीय मार्ग प्रस्तुत करने का गंभीर प्रयास भी है।
जहानाबाद। संत विनोबा भावे की अहिंसक, रचनात्मक और सार्वभौमिक मानवता पर आधारित विचारधारा को आगे बढ़ाने वाले प्रतिष्ठित संगठन आचार्यकुल का तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन 16 से 18 दिसंबर 2025 को बोधगया में आयोजित होने जा रहा है। यह आयोजन वर्तमान वैश्विक संकटों, सामाजिक असमानताओं, राजनीतिक विभाजन और मानवीय मूल्यों के क्षरण के दौर में विनोबावादी चिंतन को पुनर्स्थापित करने की एक बड़ी और निर्णायक पहल माना जा रहा है।
आचार्यकुल की स्थायी ब्रह्मचारिणी तथा संत विनोबा भावे की मानस पुत्री सुश्री प्रवीणा देसाई ने कहा कि यह सम्मेलन विश्व स्तर पर फैली चुनौतियों — युद्ध, हिंसा, पर्यावरण संकट, आर्थिक विषमताओं और सामाजिक टूटन — का गांधी-विनोबा के रचनात्मक रास्ते से समाधान खोजने के उद्देश्य से आयोजित किया गया है। उनके अनुसार, अहिंसा, सत्य, सहयोग और सर्वसहमति आधारित नेतृत्व ही आज की दुनिया को स्थायी और संतुलित दिशा प्रदान कर सकता है।
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अधिवेशन में देश के 22 राज्यों और अमेरिका, इंग्लैंड, जापान, नेपाल सहित कई देशों से आचार्यकुल सदस्य, भूदान यज्ञ प्रतिनिधि, साहित्यकार, विचारक और सामाजिक कार्यकर्ता हिस्सा लेंगे। इस वैश्विक समागम का संचालन आचार्यकुल के पूर्व कुलपति एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. आचार्य धर्मेन्द्र के नेतृत्व में किया जाएगा। अधिवेशन का एजेंडा अत्यंत व्यापक, गहन और दूरदर्शी है। इसमें तीन प्रमुख लक्ष्य केंद्रीय भूमिका निभाते हैं—
- आचार्यकुल के 60वें वर्षगांठ (2027) की तैयारी
आचार्यकुल की स्थापना के 60 वर्ष पूरे होने पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भव्य कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार की जाएगी, ताकि संस्था के मूल्य, कार्य और संदेश व्यापक मानव समाज तक पहुँच सकें। - ‘जय जगत’ कार्यक्रम का विस्तार
2026, 2027 और 2028 के लिए वैश्विक शांति, सर्वधर्म सद्भाव और मानवीय एकता पर केंद्रित ‘जय जगत’ अभियान को दुनियाभर में प्रभावी ढंग से फैलाने की रणनीति तय की जाएगी। - भूदान यज्ञ आंदोलन के 75वें वर्ष (2026) का आयोजन
विनोबा भावे के ऐतिहासिक भूदान यज्ञ को पुनर्स्मरण करते हुए भूमि न्याय, समानता और ग्राम स्वराज के सिद्धांतों को आधुनिक संदर्भ में आगे बढ़ाने की दिशा में ठोस प्रस्तावों पर विमर्श होगा।
इसके साथ ही महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से ‘ग्राम सभा सहयोग अभियान’ को सशक्त बनाने, और साहित्य, कला, संस्कृति तथा पत्रकारिता प्रकोष्ठों के गठन और विस्तार पर भी विशेष चर्चा की जाएगी। आचार्यकुल के कला–संस्कृति प्रकोष्ठ के प्रभारी डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तव विनोबावादी विचारधारा को कला और संस्कृति के माध्यम से जनमानस तक पहुँचाने पर अपने विचार प्रस्तुत करेंगी, जिससे रचनात्मक गतिविधियों का बड़ा ढांचा तैयार किया जा सके।
आचार्यकुल के राष्ट्रीय प्रवक्ता सत्येन्द्र कुमार पाठक ने इस अधिवेशन को गांधी, विनोबा और जयप्रकाश नारायण की विचारधारा से प्रेरित रचनात्मक चिंतकों का एक महत्त्वपूर्ण वैश्विक समागम बताया। उन्होंने कहा कि यह आयोजन न केवल विचारों का संगम है, बल्कि दुनिया के सामने एक वैकल्पिक, शांतिपूर्ण और मानवीय मार्ग प्रस्तुत करने का गंभीर प्रयास भी है। यह अधिवेशन एक ऐसे भविष्य की रूपरेखा तय करने का प्रयास है, जहाँ समाज रचनात्मकता, सहयोग, न्याय और अहिंसा के आधार पर आगे बढ़े—बोधगया में होने वाला यह मंथन न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए सार्थक संदेश लेकर आने की उम्मीद जगाता है।








