साहित्य लहर
बावला इंसान

सुनील कुमार माथुर
देखो आज का मानव शांति की खोज में
कितना बावला हो गया है
वह बुरे कर्म कर अच्छा फल पाना चाहता है
छल कपट कर वह लाभ कमाना चाहता है
हेराफेरी, रिश्वतखोरी कर
इंसानियत का सौदा कर रहा है
बुरे कर्म कर वह हाथ में माला लेकर
मंदिरों में घंटिया बजाकर
शांति की खोज कर रहा है
वह सुख शांति को चाहता है
जो उसके हृदय में छुपी है लेकिन
छल कपट मक्कारी चापलूसी भ्रष्टाचार
काले कारनामे की
आंखों पर पडी परतों के कारण
हृदय में छिपी शांति उसे नहीं दिख रही हैं
अगर इंसान में जरा सी भी
इंसानियत बची है तो
वह अपने हृदय में झांके
शांति मंदिर मस्जिद गुरूद्वारा व
गिरजाघरों में नहीं है वरन् शांति तो
इंसान के हृदय में है
बस जरूरत है तो
नैतिकता के मार्ग पर चलने की
शांति स्वतः ही नजर आ जायेगी
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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