पुस्तक समीक्षा : जवाहरलाल नेहरू पर चौंकाने वाली पुस्तक
शिखर चंद जैन, कोलकाता
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु या राष्ट्रपिता की पदवी से नवाजे गए मोहनदास करमचंद गांधी सहित हमारे महानायकों के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है। कुछ ऐसे चापलूसों या समर्थकों द्वारा , जिन्होंने उनके व्यक्तित्व के कमज़ोर पक्ष को नजरअंदाज कर दिया तो कुछ निष्पक्ष और तटस्थ लोगों द्वारा जिन्होंने सिक्के के दोनों पहलुओं पर प्रकाश डाला। खुद इन महानायकों ने भी अपनी किसी पुस्तक में अपने व्यक्तित्व के स्याह सफेद पहलुओं पर जाने या अनजाने में बहुत कुछ लिखा है।
अगर आप एक ईमानदार पाठक, विद्यार्थी या जिज्ञासु व्यक्ति हैं तो कभी भी किसी महापुरुष के व्यक्तित्व या सोच की एकतरफा जानकारी से संतुष्ट नहीं हो सकते। प्रस्तुत पुस्तक बेहद रोचक अंदाज में नेहरू के व्यक्तिव, कृतित्व, सोच और उनकी राजनीतिक – सामाजिक शुचिता से जुड़ी उन बातों से रूबरू कराती है जिन पर आम तौर पर न खुल कर कुछ कहा गया, न छापा या कभी पढ़ाया गया।
क्या आपने कहीं पढ़ा कि जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रवाद को एक रोग कहा था? क्या आपने कहीं पढ़ा कि नेहरू भव्य मंदिरों के निर्माणऔर उनके दर्शन से कुछ चिढ़ से जाते थे या उन्हें वे अच्छे नहीं लगते थे? क्या आप जानते हैं कि नेहरू धर्म को एक अंधविश्वास से ज्यादा कुछ नहीं मानते थे? आप शायद नहीं जानते कि नेहरू ने डिस्कवरी ऑफ इंडिया में खुद लिखा है कि वे किसी भगवान, धर्म या पंथ में विश्वास नहीं करते, उनकी आस्था मार्क्स और लेनिन में है।
इस पुस्तक में ऐसी बहुत सी बातें उजागर की गई हैं जिन्हें लेखक ने कल्पना में खुद को एक विद्यार्थी मानते हुए नेहरु जी से सवाल करते हुए उनके द्वारा दिए जवाबों के माध्यम से प्रस्तुत किया है।
कथित निष्पक्ष इतिहासकारों द्वारा नेहरू की मौजूदा गढ़ी गई या “बनाई गई” छवि से इतर उन्हें जानना चाहें तो यह पुस्तक बहुत ही उपयोगी, रोचक और संग्रहणीय है। लेखक ने किसी पूर्वाग्रह के वशीभूत, हवा हवाई या अपने मन से पुस्तक में कुछ भी नहीं कहा है बल्कि अपनी बातों को विख्यात और सर्वस्वीकृत पुस्तकों में प्रकाशित कथ्यों व तथ्यों के माध्यम से ही स्थापित और प्रमाणित किया है।
जिन पुस्तकों से कथ्य और तथ्य लिए हैं वे संदर्भ ग्रंथ हैं – द डिस्कवरी ऑफ इंडिया, एन ऑटोबायोग्राफी – जवाहरलाल नेहरू एवम पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन।
पुस्तक – एक मुलाकात: जवाहरलाल नेहरू के साथ
लेखक – राजीव पुंडीर | प्रकाशक – राजमंगल प्रकाशन,अलीगढ़
मूल्य – 249/- | पृष्ठ – 174