हमारे पास जो होता है, हम उसकी कद्र नहीं करते

स्नेहा सिंह
जेड-436ए, सेक्टर-12, नोएडा-201301 (उ.प्र.)
दिल पर हाथ रख कर इन सवालों के जवाब दीजिएगा। आप अपनी जिंदगी से खुश हैं? आप खुद को सुखी मानते है? पहले झटके में तो आप यही जवाब देंगे कि ‘हां मैं खुश हूं। मुझे कोई प्राब्लम नहीं है।’ अगर ऐसा है तो हम सब जिंदगी के हर पल का आनंद क्यों नहीं उठा सकते? हम हमेशा यह महसूस करते रहते हैं कि कोई न कोई कमी है। पूरे दिन मेहनत-मजदूरी करने के बाद भी हमें शांति नहीं मिलती। हम रोजाना काम करते हैं, पर इतना काम करने के बाद भी हम हायहाय करते रहते हैं। अब एक और बड़ा सवाल, आप मजे से जी सकें, इतना कुछ आप के पास है या नहीं? बात जरूरत की है, लग्जरी की नहीं। इच्छाओं का तो कोई अंत ही नहीं है। जिसके पास मर्सिडीज या राल्स रायस है, उसे अपना हेलीकॉप्टर या प्राइवेट जेट लेना है। बाजार में रोज-रोज कुछ न कुछ नया आता रहता है और हम यह मानने लगते हैं कि हमारे पास जो है, वह आउटडेटेड है। हमारे पास जो नहीं है, उसके लिए हम झंखते रहते हैं और दुखी होते रहते हैं। कोई चाहत, कोई इच्छा या किसी सपने का होना गलत नहीं है। सवाल यह है कि हमारे पास जो है, हम उसे कितना एंज्वाय कर रहे हैं।
आपने द मिसिंग टाइल सिंड्रोम की बात सुनी होगी? वैसे तो यह एक साइकोलाॅजिकल एक्सपेरिमेंट है। एक आदमी का अपने शहर में किसी ने नहीं बनाया था, इस तरह का भव्य होटल बनवाने का मन हुआ। उसने अच्छे कारीगरों को बुलवा कर बढ़िया होटल बनवाया। होटल में एक स्विमिंग पूल भी बनवाया। इस स्विमिंग पूल में इटालियन टाइल्स लगी थी। लोग उस स्विमिंग पूल को देख कर दंग रह जाते थे। कारीगर की गलती की वजह से उस स्विमिंग पूल में एक टाइल नहीं लगी थी। पहले तो लोग उस स्विमिंग पूल को देख कर आफरीन हो जाते, पर जब उनकी नजर उस टाइल की खाली जगह पर जाती, तब उन्हें लगता कि अरे बाप रे इतनी बड़ी गलती?
उस एक टाइल की वजह से पूरे स्विमिंग पूल की सुंदरता नष्ट हो जाती थी। सभी की नजर वहां जाती और सभी अफसोस व्यक्त करते। होटल के मालिक से भी यह बात कहते कि सब कुछ अच्छा है। बस, यही जो एक टाइल नहीं है, वही खटकती है। होटल का मालिक कहता कि यह एक टाइल जानबूझकर नहीं लगाई गई है। यह मैसेज देने के लिए कि एक छोटी सी चीज नहीं है तो सभी लोगों का ध्यान उसी पर जाता है। जबकि पूरा स्विमिंग पूल इतना भव्य है, उसका आनंद कोई नहीं लेता। सभी एक मिसिंग टाइल की बात करते हैं। जरा सोचिए, हम सभी ऐसा करते हैं। नई ली गई कार में एक लाइन पड़ जाए तो हम दुखी हो जाते हैं। जबकि उस लाइन पड़ने से कार चलाने में कोई परेशानी नहीं होगी। जबकि कार के इंजन में कोई परेशानी होती है तो हम उस पर उतना ध्यान नहीं देते। पर कहीं भी जरा सा दाग लग जाए तो वह हमें खटकता रहता है।
आखिर हमारा ध्यान कमी, मर्यादा या निगेटिविटी की ही ओर क्यों जाता है? एक कथकली डांसर की कही यह बात सच है कि ‘एक बार मैं स्टेज पर परफार्म कर रही थी। मैं ने बहुत अच्छा डांस किया था। कार्यक्रम पूरा होने वाला था कि उसके कुछ मिनट पहले मुझे एक चक्कर सा आया और मैं स्टेज पर गिरते-गिरते बची। मैंने तुरंत खुद को संभाल लिया और फिर से डांस करने लगी। मजे कि बात यह कि मूझे चक्कर सा आया, यह बात सभी ने याद रखी। उसके क्षण भर बाद ही मैंने कितना अच्छा परफार्म किया, इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।’
हमारे सुख, दुख, खुशी, आनंद, नाराजगी, उदासी इस पर आधारित हैं कि हमारे साथ और हमारे अगल-बगल जो हो रहा है, उस बारे में हमारे क्या विचार हैं? सुख या खुशी हमारे पास कितनी है, उससे कुछ लेना-देना नहीं है। जीवन के लिए सुविधा और साधन जरूरी हैं, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। पर अच्छी तरह जिया जा सके, इतना तो ज्यादातर लोगों के पास होता ही है। एक संत ने कहा था कि ‘दो जून खाने को मिल जाए, उसके बाद अपने पास जो कुछ भी होता है, सुख से रहने के लिए होता है। कभी छोटा घर भी विशाल कोठी को मात देता है। आप उसमें कैसे रहते हैं, इस बात पर निर्भर करता है।
आप एक दूसरी बात पर भी ध्यान दीजिएगा। हमारे पास जो नहीं होता है, हम उसी के बारे में सोचते रहते हैं। खूब मेहनत कर के हम उसे पा भी लेते हैं। जब वह चीज मिल जाती है तो फिर हमारे लिए उसकी कीमत कुछ नहीं रह जाती। निदा फाजली ने कहा है, “दुनिया जिसे कहते हैं, वह जादू का खिलौना है, मिल जाए तो मिट्टी है, खो जाए तो सोना है।” अब रोमांच बहुत जल्दी खत्म हो जाता है और इंतजार बहुत लंबा चलता है। हम नया मोबाइल या कुछ भी नया खरीदते है तो दो-चार दिन उसका रोमांच रहता है। बहुत जल्दी सब कुछ रूटीन में आ जाता है। कुछ भी नया नहीं रह जाता। एक दूसरा किस्सा सुनिए। दो दोस्त मिले। एक ने पूछा कि क्या नया है? दूसरे ने जवाब दिया कि रोज-रोज क्या नया हो सकता है? सब कुछ वही पुराना और उबाऊ है। यह बात सुन कर उसके दोस्त ने कहा कि आप ऐसा क्यों सोचते हैं? समय रोजाना नया होता है, रोजाना नई सुबह होती है, रोज नई सांस होती है हमारी जिंदगी में रोज-रोज कुछ नया होता है, आखिर हम इसे क्यों नहीं फील करते?
जिंदगी और सुख के बारे में एक अध्ययन यह कहता है कि सच्चा सुख और खरा आनंद अच्छे संबंधों से ही मिलता है। जबकि अब हमारे संबंध भी कमजोर होते जा रहे हैं। संबंधों में अपेक्षाएं इतनी अधिक बढ़ गई हैं कि कोई कभी पूरी नहीं कर सकता। प्यार बहुत जल्दी खत्म हो जाता है। प्रेमियों का ही किस्सा देखिए। जब तक दोनों मिलते नहीं हैं, एक-दूसरे से मिलने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। पुरी दुनिया से बगावत करने को तैयार रहते हैं। और जब मिल जाते हैं तो तुरंत ही प्यार का डाउनफाॅल शुरू हो जाता है। संबंधों का ग्रेस बनाए रहना चाहिए। लाइफ बहुत इजी होती है। हम खुद ही इसे कठिन बना लेते हैं। हमारी सोच, हमारी मान्यताएं, हमारे ख्थाल और हमारी ग्रंथियां हमें इस तरह जकड़ लेती हैं कि हम कभी-कभी उसे समझ ही नहीं पाते। निगेटिवटी बहुत तेजी से हावी हो जाती है, पाॅजिटिविटी के लिए प्रयास करना पड़ता है।
जिंदगी में जो नहीं है, उसकी अपेक्षा जो है, उसका इम्पोर्टेंस अधिक है। आपने अब तक मेहनत कर के जो प्राप्त किया है, उसका आनंद लीजिए। हर क्षण का आनंद लेकर जिएंगे तो जिंदगी को थकान नहीं लगेगी। कूछ तो कम रहेगा ही, कुछ तो घटेगा ही। हर इच्छा तो कभी पूरी नहीं होनी है। लाइफ इज ब्यूटीफुल। अलबत्त, इसकी सब से बड़ी शर्त यह है कि आप को खुद मानना चाहिए कि जिंदगी बहुत खूबसूरत है और मेरे पास अभी जो है, वह अच्छी तरह जीने के लिए पर्याप्त है।
दुनिया में 3.8 प्रतिशत लोग डिप्रेशन से पीड़ित हैं। यह प्रतिशत लगातार बढ़ता जा रहा है। अब तो बच्चे भी डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। यह बात साबित करती है कि हम जीवन जीना भूलते जा रहे हैं।