***
फीचर

भूमिपुत्र : दादा स्व.श्री रुस्तम सिंह वर्मा जी

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

दादा स्वर्गीय श्री रुस्तम सिंह वर्मा जी मां भारती के एक सच्चे भूमिपुत्र थे । उन्होंने अपना सारा जीवन खेती- किसानी के लिए समर्पित कर दिया । ईमानदारी उनके अंदर कूट-कूटकर भरी थी । दया -धर्म की ज्योति उनके हृदय में हमेशा जलती रहती थी । वे अपना अधिकांश समय खेतों पर ही व्यतीत करते थे । घर पर नाममात्र के लिये आते थे । कहते हैं – ‘उन्होंने कभी अपने बैलों को चाबुक से नहीं मारा था । उनकी आवाज मात्र से बैल उनके नियंत्रण में हो जाते थे ।’

मुझे उनकी जन्म व मृत्यु की तिथि के संबंध में कोई जानकारी नहीं है, क्योंकि मैं उस समय बहुत छोटा था, जब उनकी मृत्यु हुई थी । कक्षा 3 या 4 का छात्र रहा होहूॅंगा । सर्दियां शुरू हो गईं थीं । मैं प्राथमिक विद्यालय- रिहावली में था, तभी किसी ने बताया कि हमारे दादा जी की मृत्यु हो गई है । मास्टर जी ने स्कूल की छुट्टी कर दी । बस इतना ही याद है, उनकी मृत्यु की तारीख जानने के लिए मैंने उनके पुत्रों (अपने ताऊ, चाचा, पिता आदि) से जानकारी लेनी चाही, परंतु उनके द्वारा भी मिल न सकी ।

दादा जी अपने जीवन में कभी किसी के सामने झुके नहीं और कभी किसी कमजोर को सताया नहीं । ह्रदय में हमेशा सहयोग की भावना लिये रहते थे । गांव के लोग आज भी उनकी प्रशंसा करते नहीं थकते । मुझे याद है, वे हार (खेतों से) मीठे बेर डोंची (लोहे की छोटी बाल्टी) भरकर लाते थे और हम बच्चों में बांट देते थे । बच्चों के प्रति उनका स्नेह बहुत था । दादाजी के चार पुत्र व तीन पुत्रियों में से उनकी एक पुत्री काफी समय पहले ही चल बसी थी । वर्तमान में चार पुत्र व दो पुत्रियां मौजूद हैं । मैं उनके तीसरे बेटे का बेटा हूॅं ।

दादाश्री हमेशा फिजूलखर्ची के विरोधी रहे । शादी- ब्याह में टेंट, डीजे आदि का विरोध करते थे । रेडियो, टीवी आदि के सख्त विरोधी थे । हमारे परिवार में पहली बार ताऊ के लड़के की शादी में टेंट लगा तो उन्होंने विरोध किया, उनकी बात नहीं मानी गई तो वे घर छोड़ कर चले गये । शादी पूर्ण होने के बाद ही लौटे । उनसे छिपकर चोरी-छिपे रेडियो खरीदा गया था ।

होनी को कोई टाल नहीं सकता, विधि का विधान… एक रात दादाजी खलियान पर सो रहे थे, शायद गर्मी का मौसम रहा होगा । उन्हें फालिस (लकवा) मार गया । वे सुबह जमीन पर पड़े मिले । गांव के अंधविश्वासी जनों द्वारा तमाम भूत -प्रेत की बातें की गईं । उनका लंबा इलाज चला । सहारा लेकर थोड़े- बहुत चलने फिरने तो लगे, परंतु वे अपनी आवाज हमेशा- हमेशा के लिए खो बैठे ।

मुझे खूब याद है, जब वे सुबह-सुबह डोलडाल (शौच) के लिए जाते थे, तो हम लोग बारी-बारी उनकी डोंची (पानी की छोटी बाल्टी) पकड़कर आगे -आगे चलते थे । उन्होंने कई बार अपने परिवारीजनों में डोंची फेंक कर मारी थी । ऐसा तब होता था, जब परिवार का कोई शैतान बच्चा उन्हें चिढ़ाता था या वे जब अपनी बात ‘हें-हें’ करके इशारों में समझाते थे और सामने वाला लाख कोशिश करने पर भी समझ नहीं पाता था ।

हमारा संयुक्त परिवार था, गांव में काफी इज्जत थी । दादा जी गुजर गये तो परिवारी जनों के भीतर छिपी आपसी ईर्ष्या भी बाहर निकल कर आ गई । लड़ाईयां – झगड़े शुरू हो गये, फिर भी परिवार में बंटवारा नहीं हुआ । काफी लंबे समय तक हमारा संयुक्त परिवार रहा । आज स्थितियां बेहद खराब हैं, जिनका वर्णन यहां करना उचित नहीं ।

मेरे दादाश्री एक सच्चे भूमिपुत्र थे…।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

Devbhoomi
From »

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

लेखक एवं कवि

Address »
ग्राम रिहावली, डाकघर तारौली गुर्जर, फतेहाबाद, आगरा, (उत्तर प्रदेश) | मो : 9876777233

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights