
बदरीनाथ। बदरीनाथ धाम में आज एक अत्यंत महत्वपूर्ण आध्यात्मिक क्षण आने वाला है, जब भगवान बदरीनाथ के कपाट शीतकाल के लिए परंपरागत विधि के साथ बंद कर दिए जाएंगे। हर वर्ष की भांति इस बार भी कपाट बंद होने से पहले पूरे मंदिर परिसर को भव्य रूप से सजाया गया है। लगभग दस क्विंटल फूलों से सजे इस पावन धाम में भक्तिभाव और उत्साह अद्वितीय रूप में दिखाई दे रहा है। अनुमान है कि इस पावन अवसर पर पांच हजार से अधिक श्रद्धालु उपस्थित रहेंगे और इस पवित्र क्षण के साक्षी बनेंगे।
कपाट बंद होने की प्रक्रिया सोमवार से ही आरंभ हो चुकी थी। पंच पूजाओं के क्रम में माता लक्ष्मी मंदिर में कढ़ाई भोग का आयोजन किया गया, जिसके बाद मुख्य पुजारी अमरनाथ नंबूदरी ने परंपरा के अनुसार माता लक्ष्मी को बदरीनाथ गर्भगृह में विराजमान होने के लिए विधिवत आमंत्रण दिया। धाम की परंपरा के अनुसार कपाट बंद होने के पश्चात माता लक्ष्मी पांडुकेश्वर स्थित योगध्यान बद्री मंदिर में विराजमान रहती हैं, जहाँ अगले छह महीनों तक भगवान बदरीनाथ की शीतकालीन पूजा संपन्न होगी। इसी क्रम में भगवान केदारनाथ की पूजा ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में, मां गंगा की पूजा मुखबा गांव में तथा मां यमुनोत्री की पूजा खरसाली में संपन्न होगी।
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सोमवार को सम्पन्न अनुष्ठानों के बाद आज मंगलवार को दोपहर 2 बजकर 56 मिनट पर कपाट औपचारिक रूप से बंद कर दिए जाएंगे। इससे पूर्व 21 नवंबर से पंच पूजाओं की श्रृंखला प्रारंभ हो चुकी थी, जिसके अंतर्गत गणेश मंदिर, आदि केदारेश्वर तथा आदि गुरु शंकराचार्य गद्दी स्थल के कपाट भी विधिवत बंद किए गए। इसी के साथ वेद ऋचाओं के नियमित वाचन को भी शीतकाल के लिए विराम दे दिया जाएगा।
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कपाट बंद होने के अवसर पर मंदिर परिसर में विशेष तैयारियां की गई हैं। बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति तथा पुजारियों ने मिलकर धाम को अत्यंत मनोहारी रूप दिया है। फूलों की भव्य सजावट भक्तों को आकर्षित कर रही है और सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ मंदिर परिसर में उमड़ रही है। कठिन पर्वतीय यात्रा के बाद भक्त अंतिम दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करने के लिए उत्सुक दिखाई दे रहे हैं।
धाम की यह वार्षिक परंपरा केवल धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं है, बल्कि यह पर्वतीय समाज की गहरी आस्था, आध्यात्मिक भाव और सांस्कृतिक विरासत का सशक्त प्रतीक है। कपाट बंद होने की यह प्रक्रिया भक्तों को प्रकृति, परंपरा और भक्ति के अनोखे संगम का अनुभव कराती है। अगले छह महीनों तक श्रद्धालु पांडुकेश्वर स्थित योगध्यान बद्री मंदिर में भगवान बदरीनाथ के दर्शन-पूजन कर सकेंगे, और शीतकालीन अध्यात्म का यह विशेष चरण लोक-मानस में अपनी गहरी छाप छोड़ता रहेगा।





