गणतन्त्र दिवस को समर्पित ‘आज़ाद हैं’
मृदुला घई
लंबी है आज़ादी करोड़ों की आबादी
दिल में गम आँखे हैं नम
भूख प्यास सताती खाली पेट सुलाती
बीमारी से लाचारी इलाज बिन भारी
गरीबी की मारी जिन्दगियाँ हैं हारी
भ्रूण हत्या जारी मरती बेटियां प्यारी
जच्चा बच्चा कुपोषण कैसा ये शोषण
हाय ये बलात्कार औरतों पे अत्याचार
दहेज की प्रथा कैसी ये व्यथा
जलाने का पाप बिकते मां बाप
छोटी-छोटी बाला बचपन कुचल डाला
करा बाल विवाह जीवन किया स्वाह
गौरव रक्षा हत्या बराबरी एक मिथ्या
बदन बेच पैसे पेट भरे ऐसे
अज्ञानता का अंधेरा अधूरा शिक्षा घेरा
भटकते हैं तभी किशोर युवा सभी
धक्के खाए कहीं हुनर भी नहीं
गरीबी की मज़बूरी रोज़गार है जरूरी
काम की धुन बेरोज़गारी की धुन
कीमते छूती आसमां घूटते हुए अरमां
जात पात बाँटे टुकड़ों में काटे
धर्म का द्वेश भाषा का कलेश
मौत की दहशत आतंकियों की वैश्त
कितनी बुरी किस्मत सर नहीं छत
जहां छत वहां टपके जहाँ तहाँ
दाएं बाएं चोर भ्रष्ट हर ओर
बिकाऊ है ईमान मोल मिलता इंसान
आँसुओं का सैलाब कब आएगा इंकलाब
पूरे होंगें सपने दुख दूर अपने
क्या अज़ादी व्यर्थ नहीं कोई अर्थ
याद करो वो काली शाही जो
गुलामी के दिन किसी हक बिन
अंग्रेजों की मनमानी शहीदों की कुर्बानी
लोकतंत्र की पुकार अपनी बनाई सरकार
सब था संभव खट्टे मीठे अनुभव
वो उतार-चढ़ाव पार कई पड़ाव
गरीब हुए कम गरीबी होगी खत्म
लड़कियांँ रही पढ़ हर क्षेत्र बढ़
हर गाँव बिजली जिंदगी है सजली
ख्वाइशें रही पल इरादे हैं सबल
ख्वाब हुए बड़े मौके हैं खड़े
संस्कृतियों का मेल मीलो सड़क रेल
अर्थ व्यवस्था सशक्त हर और देशभक्त
कई लक्ष्य अधूरे नहीं है पूरे
पर ख्याल आज़ाद सब ख्वाब आज़ाद
उनकी ताबीर आज़ाद है इंसा आज़ाद
हर तकदीर आज़ाद ये आज़ादी जिंदाबाद
ये आज़ादी जिंदाबाद