राजनीति में अहंकार
ओम प्रकाश उनियाल
श्रीमद्भागवत गीता पुराण में एक अधयाय ‘गजेन्द्र मोक्ष’ का है। जिसमें हाथी और मगरमच्छ की कहानी है। हाथी को अपने बल का अहंकार होता है। जब वह तालाब में पानी पीने जाता है तो एक मगरमच्छ द्वारा उसका पैर मुंह में जकड़ लिया जाता है।
लाख कोशिशों के बावजूद भी वह मगरमच्छ के मुंह से अपना पैर नहीं छुड़ा पाता। अंतत: वह भगवान विष्णु का स्मरण करता है एवं भगवान विष्णु अवतरित होकर सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ की गर्दन को अलग कर देते हैं।
इस प्रकार से हाथी का पैर भी छूट जाता है और मगरमच्छ को भी मोक्ष मिल जाता है। तात्पर्य यह है कि अपने बल पर कभी अंहकार नहीं करना चाहिए। राजनीतिक दलों में चुनाव से पहले जब किसी सीट का फेर-बदल किया जाता है या चहेतों व स्वयं को टिकट न मिलने पर यह कुछ नेताओं को भारी खलता है। उनके भीतर का अहंकार बाहर निकल आता है।
वे बगावत करने की धमकी तक दे डालते हैं। असल में सबको हाईकमान के निर्देशानुसार चलना होता है। हर दल का हाईकमान स्थिति को भांपकर ही निर्णय लेता है। ऐसे में अहं का टकराव पूरे दल में ऐनवक्त पर खलबली मचा डालता है।
किसी भी दल के कार्यकर्ता का दायित्व बनता है कि वह दल की गरिमा को कायम रखे। वरना मतदाता भी उस दल से दूर भागने लगेगा। अहं छोड़ सहयोग करना चाहिए। क्योंकि, आखिर में हाईकमान की ही शरण में जाना पड़ता है।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »ओम प्रकाश उनियाललेखक एवं स्वतंत्र पत्रकारAddress »कारगी ग्रांट, देहरादून (उत्तराखण्ड)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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