
हल्द्वानी। जिले में विकास प्राधिकरणों की कार्यशैली को लेकर जनता में भारी आक्रोश है। शहर के कई नागरिकों ने आरोप लगाया है कि प्राधिकरण भारी विकास शुल्क लेकर भवन मानचित्र (मैप) तो पास कर देता है, लेकिन जैसे ही निर्माण कार्य शुरू होता है, अधिकारियों की ओर से नोटिस भेजकर काम रुकवा दिया जाता है। इससे न केवल मानसिक और आर्थिक उत्पीड़न बढ़ता है, बल्कि प्राधिकरण की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं। सत्तापक्ष और विपक्ष, दोनों ही इस रवैये से नाराज़ हैं, जबकि आम जनता इसे सीधा-सीधा भ्रष्टाचार का संकेत मान रही है।
लोगों का कहना है कि यदि प्राधिकरण ने एक बार भवन मानचित्र स्वीकृत कर दिया है, तो बाद में उसी नक्शे को अवैध बताकर सवाल उठाना न केवल भ्रम पैदा करता है, बल्कि भवन स्वामी को अनावश्यक परेशानी में डाल देता है। सोमवार को शहर के कई लोगों ने प्राधिकरण की इसी कार्यशैली को लेकर अपना रोष व्यक्त किया। निलियम कॉलोनी के मोहन सिंह नेगी का कहना है कि नक्शा पास होने के बाद उसे अवैध घोषित करना प्राधिकरण की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है। इससे भवन स्वामी मानसिक और आर्थिक दबाव झेलता है। उनका मानना है कि ऐसे मामलों में संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई की जानी चाहिए।
ईको टाउन के दीपेश श्रीवास्तव का कहना है कि आम आदमी तकनीकी जानकारी के अभाव में निर्माण के दौरान कुछ गलतियां कर देता है, लेकिन इसे जनता की गलती कहकर नोटिस भेजना उचित नहीं। जब प्राधिकरण भारी शुल्क लेता है, तो यह स्पष्ट होना चाहिए कि उसका उपयोग किस प्रकार हो रहा है। हल्द्वानी के निवासी विजय पाल ने सवाल उठाया कि यदि किसी निर्माण में अवैधता है, तो प्राधिकरण शुरू से ही रोक क्यों नहीं लगाता? इंजीनियर समय पर साइटों पर जाकर निरीक्षण क्यों नहीं करते? आधा निर्माण हो जाने के बाद नोटिस भेजना या पूरा बनने के बाद तोड़ने पहुंचना जनता के लिए भारी नुकसानदायक है।
हल्द्वानी के ही अरशद अली ने कहा कि प्राधिकरण की कार्यशैली लंबे समय से सवालों के घेरे में है। गरीब व्यक्ति की कोई सुनवाई नहीं होती, जबकि प्रभावशाली लोगों के नक्शे तुरंत पास हो जाते हैं। हाल ही में ऊंचापुल क्षेत्र में पत्रकार की पिटाई के बाद गिराए गए निर्माण को उन्होंने उदाहरण बताया, जिससे स्पष्ट होता है कि शहर में कई अवैध निर्माण अधिकारियों की शह पर ही फल-फूल रहे हैं। जनता की ये प्रतिक्रियाएं साफ दर्शाती हैं कि प्राधिकरणों पर विश्वास तेजी से कम हो रहा है। लोग उम्मीद कर रहे हैं कि शासन इस मामले में हस्तक्षेप कर ऐसे प्रावधान लागू करे, जिससे पारदर्शिता सुनिश्चित हो और आम नागरिकों को राहत मिल सके।





