
देहरादून। देहरादून में निवेशकों और बैंकों के करोड़ों रुपये हड़प कर फरार बिल्डर शाश्वत गर्ग और उनके परिवार के खिलाफ जांच में कई नई और चौंकाने वाली जानकारियाँ सामने आ रही हैं। प्रारंभिक जांच में यह खुलासा हुआ है कि शाश्वत गर्ग की कंपनी, गोल्डन एरा इंफ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड, संभवतः घोटाले के उद्देश्य से ही स्थापित की गई थी। जांच में यह तथ्य सामने आया है कि कंपनी को देहरादून में मसूरी रोड पर आरकेडिया हिलाक्स नामक आवासीय परियोजना शुरू करने से मात्र तीन माह पहले, 30 दिसंबर 2013 को राजनगर गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश में पंजीकृत कराया गया। यह समयरेखा दर्शाती है कि कंपनी के गठन का मकसद सीधे तौर पर निवेशकों से धन जुटाना और परियोजना के लिए कानूनी ढांचा तैयार करना था।
कंपनी के निदेशकों में केवल शाश्वत गर्ग और उनकी माता अंजली गर्ग ही प्रारंभिक संस्थापक निदेशक थे। बाद में उनके पिता प्रवीण गर्ग और शाश्वत के साले सुलभ गोयल व कुशाल गोयल को 11 सितंबर 2021 को निदेशक बनाया गया। जांच में यह भी पता चला कि शाश्वत के ससुराल वालों को परिवार के भागने की पूरी जानकारी थी, बावजूद इसके उन्होंने हापुड़ कोतवाली में 17 अक्टूबर को जीजा व उनके परिवार के लापता होने की शिकायत दर्ज कराई, ताकि मामले को नया मोड़ दिया जा सके। कंपनी के वित्तीय आंकड़े भी संदिग्ध पाए गए। वर्ष 2022 से कंपनी घाटे में चली गई और उसका टर्नओवर 51 प्रतिशत की गिरावट के साथ केवल 11 करोड़ रुपये रह गया। यह तथ्य दर्शाता है कि कंपनी के संचालन और परियोजना के पीछे वित्तीय पारदर्शिता नहीं थी।
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विशेष रूप से, कंपनी के गठन और परियोजना की पावर ऑफ़ अटॉर्नी सीधे शाश्वत गर्ग के नाम पर कर दी गई थी, जबकि जमीन का करार 14 मार्च 2014 को राजेंद्र कुमार के साथ किया गया था। इसका मतलब है कि परियोजना शुरू होने से पहले ही कंपनी का नियंत्रण और प्रबंधन शाश्वत के हाथ में था, जिससे निवेशकों के लिए धोखाधड़ी करना आसान हो गया। पुलिस इस मामले में शाश्वत गर्ग और उनके परिवार के अन्य सदस्यों की भूमिका, उनके ससुराल वालों की जानकारियों की स्थिति और परियोजना की वास्तविक वित्तीय स्थिति की विस्तृत जांच कर रही है। अधिकारियों ने कहा है कि यह मामला केवल निवेशकों के पैसों की हेराफेरी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें परिवार और निकट संबंधियों की भागीदारी से जुड़े कई कानूनी और आपराधिक पहलू भी सामने आ रहे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, इस मामले की जांच से यह स्पष्ट होगा कि क्या कंपनी वास्तव में वैध रूप से स्थापित की गई थी या यह पूरी तरह से निवेशकों को धोखा देने के लिए बनाई गई एक योजना का हिस्सा थी। देहरादून पुलिस और फाइनेंसियल जांच एजेंसियां मिलकर इस मामले की तह तक जाने का प्रयास कर रही हैं। इस घटना ने निवेशकों और आम जनता में एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि प्रोजेक्ट लांच करने से पूर्व कंपनियों और उनके निदेशकों के पृष्ठभूमि और वित्तीय रिकॉर्ड की जाँच कितनी महत्वपूर्ण होती है।





