
राज शेखर भट्ट
उत्तराखण्ड, जिसे सामान्यतः शांति, सरलता और प्राकृतिक सौन्दर्य की भूमि के रूप में जाना जाता है, पिछले कुछ वर्षों में अपराध के बदलते स्वरूपों का सामना कर रहा है। हिमालयी भूगोल, सीमाई संवेदनशीलता, तीव्र होते शहरीकरण, पर्यटन से बढ़ती भीड़, नशे और बेरोजगारी जैसी चुनौतियों ने कानून–व्यवस्था पर नई जिम्मेदारियाँ डाल दी हैं। शांति प्रिय माना जाने वाला यह पर्वतीय राज्य आज अपराध की नई परतों को समझने, रोकने और नियंत्रित करने की व्यापक कोशिशों में जुटा है। अपराध का आयाम केवल पारंपरिक नहीं रहा, बल्कि साइबर अपराध, ड्रग्स नेटवर्क, मानव तस्करी, भूमि माफिया, जंगल–अपराध और पर्यटक केंद्रित अपराधों ने स्थिति को जटिल बना दिया है।
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सबसे पहले, उत्तराखण्ड की भौगोलिक स्थिति इसे विशेष रूप से संवेदनशील बनाती है। राज्य की लगभग 350 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा नेपाल और चीन (तिब्बत) से लगती है। नेपाल सीमा पर खुले बॉर्डर का लाभ उठाकर कई बार नकली पहचान पत्र, ड्रग्स, अवैध शराब, चोरी की बाइकें और मानव तस्करी जैसे मामलों में अपराधी आसानी से आवाजाही कर लेते हैं। इन सीमाई जिलों—उधमसिंह नगर, पिथौरागढ़ और चंपावत—में पुलिस को लगातार चौकस रहना पड़ता है। राज्य में कई बार पकड़े गए फर्जी मतदान पहचान पत्र, फर्जी आधार कार्ड और बांग्लादेशी–रोहिंग्या नेटवर्क इसी सीमाई संवेदनशीलता से जुड़े रहते हैं।
इसके साथ ही राज्य के सबसे बड़े शहरी केंद्र—देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी और ऋषिकेश—तेजी से बदलते शहरी ढाँचे का दबाव झेल रहे हैं। शहरी क्षेत्रों में चोरी, लूट, मारपीट, सड़क अपराध, महिलाओं के खिलाफ अपराध और साइबर ठगी की घटनाएँ बढ़ी हैं। देहरादून, जो कभी “पेंशनर्स पैराडाइज़” कहा जाता था, आज युवाओं और प्रवासियों की भीड़ वाला आधुनिक शहर बन चुका है। तेज़ी से बढ़ते फ़्लैट कल्चर, किराएदारों की अनियंत्रित आवाजाही और स्थानीय–बाहरी आबादी के घनत्व ने पुलिसिंग की जटिलता को बढ़ाया है।
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साइबर अपराध उत्तराखण्ड की कानून–व्यवस्था के सामने उभरती सबसे बड़ी चुनौती है। पर्यटन और शिक्षा—दोनों उद्योगों की वजह से इंटरनेट उपयोग अधिक है, और इसका फायदा उठाकर साइबर अपराधी फिशिंग, ऑनलाइन ठगी, बैंक फ्रॉड, नौकरी के नाम पर धोखाधड़ी और सोशल मीडिया ब्लैकमेलिंग जैसे अपराध कर रहे हैं। देहरादून, हरिद्वार और ऋषिकेश में साइबर ठगी के मामले तेजी से बढ़े हैं। किशोरों में नशे, ऑनलाइन गेमिंग और सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव भी अपराध की नई श्रेणी खड़ी कर रहे हैं।
ड्रग्स नेटवर्क भी उत्तराखण्ड की चिंता का बड़ा कारण बना है। हिमालयी राज्य होने के कारण यहाँ से कई रूट उत्तर भारत के प्रमुख मैदानी शहरों से जुड़े हैं, जहां से ड्रग्स का अवैध व्यापार संचालित होता है। चरस, गांजा, अफीम और सिंथेटिक नशे स्कूल–कॉलेजों तक पहुंचने लगे हैं। पर्यटक स्थल जैसे ऋषिकेश, औली, मसूरी और नैनीताल नशे के लिए संवेदनशील माने जाने लगे हैं। पुलिस और एसटीएफ द्वारा चलाए गए अभियान कई बार बड़े नेटवर्क का खुलासा करते हैं, लेकिन नशे का बाजार लगातार फैल रहा है, जिससे युवाओं के भविष्य पर गंभीर संकट पैदा हो रहा है।
महिलाओं के खिलाफ अपराध भी राज्य की चुनौती बने हुए हैं। घरेलू हिंसा, छेड़खानी, स्टॉकिंग, दहेज, धोखाधड़ी और इंटरनेट–आधारित उत्पीड़न के मामले पुलिस रिकॉर्ड में लगातार दिखाई देते हैं। पर्वतीय ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के खिलाफ हुए अपराध अक्सर रिपोर्ट नहीं किए जाते, जिससे वास्तविक स्थिति अक्सर आंकड़ों से अधिक गंभीर होती है। इसके अतिरिक्त मानव तस्करी—विशेषकर गरीब पहाड़ी परिवारों की लड़कियों का महानगरों में भेजा जाना—एक गहराई से छिपी समस्या है, जिस पर कई सामाजिक संगठन वर्षों से कार्य कर रहे हैं।
जंगल–अपराध भी उत्तराखण्ड की विशिष्ट समस्या है। अवैध शिकार, जंगलों में आग लगाना, लकड़ी की तस्करी और जड़ी-बूटी माफिया द्वारा की जाने वाली अवैध गतिविधियाँ राज्य के पर्यावरण के लिए खतरा हैं। हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी में आगजनी और लकड़ी कटान न केवल अपराध हैं, बल्कि पर्यावरणीय आपदा को निमंत्रण भी देते हैं। जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क और राजाजी नेशनल पार्क में बाघ, हाथी और अन्य वन्यजीवों के संरक्षण से जुड़े अपराधों की निगरानी विशेष चुनौती है। भूमि माफिया और अवैध कब्जे भी बड़े शहरों—देहरादून, ऋषिकेश, हल्द्वानी—में बढ़ते जा रहे हैं। नकली दस्तावेज़ बनाकर जमीन कब्जाना, पर्यटक क्षेत्रों में अवैध निर्माण, नदी किनारों पर रिज़ॉर्ट माफिया, और भू-उपयोग परिवर्तन में भ्रष्टाचार जैसे मामले सामने आते रहे हैं। यह अपराध न केवल अवैध कमाई का माध्यम बनते हैं, बल्कि पर्यावरण और पर्यटन पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए उत्तराखण्ड पुलिस ने कई पहलें शुरू की हैं—स्मार्ट पुलिसिंग, साइबर पुलिस स्टेशन, हंटलाइन ऐप, पर्यटक पुलिस, ड्रोन निगरानी, हाईवे पेट्रोलिंग और महिला सहायता हेतु गौरा शक्ति हेल्पलाइन। पुलिस बल का आधुनिकीकरण, तकनीक का उपयोग, कैमरा नेटवर्क, एआई आधारित अपराध विश्लेषण और सामुदायिक पुलिसिंग जैसे तरीके उपलब्ध संसाधनों का मजबूत उपयोग साबित हो रहे हैं। साथ ही सरकार लगातार सीमा सुरक्षा, ट्रैफिक प्रबंधन और अपराध रोकथाम के लिए विशेष बजट बढ़ा रही है।
फिर भी, अपराध नियंत्रण केवल पुलिस या प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है; समाज को भी इसमें भागीदारी निभानी होगी। स्कूलों में नशा विरोधी शिक्षा, साइबर सुरक्षा जागरूकता, पर्यटक क्षेत्रों में जिम्मेदार व्यवहार, किराएदार सत्यापन और स्थानीय नागरिकों द्वारा सतर्कता ही इन समस्याओं को जड़ से कम कर सकती है। उत्तराखण्ड की विशिष्टता उसके शांत सामाजिक ढाँचे, पारंपरिक मूल्यों और समुदाय–आधारित जीवन में है। यदि यही भागीदारी आधुनिक अपराध चुनौतियों के खिलाफ खड़ी होगी, तो देवभूमि का सामाजिक संतुलन और सौहार्द लंबे समय तक सुरक्षित रह सकेगा।
इस प्रकार, उत्तराखण्ड में अपराध का स्वरूप बदल रहा है—पारंपरिक अपराधों के साथ आधुनिक तकनीकी, सामाजिक और आर्थिक कारक जुड़ गए हैं। यह प्रदेश अभी भी अपेक्षाकृत सुरक्षित है, लेकिन बढ़ते अपराध संकेत देते हैं कि भविष्य में सतर्कता, नीति निर्माण, तकनीकी पुलिसिंग और सामाजिक सहयोग अत्यंत आवश्यक होंगे। उत्तराखण्ड की शांति, व्यवस्था और प्राकृतिक–सांस्कृतिक पहचान तभी सुरक्षित रहेगी जब अपराध नियंत्रण को प्राथमिकता, गंभीरता और व्यापक दृष्टिकोण के साथ सुदृढ़ किया जाए।








