
राज शेखर भट्ट
उत्तराखण्ड भारत का वह हिमालयी प्रदेश है, जहाँ प्रकृति अपने सम्पूर्ण सौन्दर्य के साथ उपस्थित है और जहाँ हर मोड़ पर अध्यात्म, रोमांच तथा सांस्कृतिक विरासत का अद्भुत मेल दिखाई देता है। पर्यटन के दृष्टिकोण से उत्तराखण्ड देश ही नहीं, विश्व का आकर्षण केंद्र है। यहाँ की बर्फ़ से ढकी चोटियाँ, गहरी घाटियाँ, शांत झीलें, हरे-भरे जंगल, प्रसिद्ध तीर्थस्थल और जीवंत लोकसंस्कृति हर आगंतुक को अविस्मरणीय अनुभव प्रदान करती हैं। उत्तराखण्ड का पर्यटन केवल प्राकृतिक या धार्मिक यात्रा ही नहीं है, बल्कि यह मनुष्य को स्वयं से जोड़ने, प्रकृति के साथ संवाद करने और जीवन को नए दृष्टिकोण से देखने का अवसर देता है।
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इस प्रदेश का इतिहास और भूगोल पर्यटन को बहुआयामी बनाते हैं। उत्तराखण्ड दो उत्तरदायी मंडलों—गढ़वाल और कुमाऊँ—में विभाजित है, और दोनों ही क्षेत्र अपने-अपने विशिष्ट सौन्दर्य, परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं के लिए प्रसिद्ध हैं। चारधाम—बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री—उत्तराखण्ड की धार्मिक पहचान का केंद्र हैं। हर वर्ष लाखों यात्री चारधाम यात्रा के लिए उत्तराखण्ड पहुँचते हैं। ये तीर्थ सिर्फ धार्मिक महत्व नहीं रखते, बल्कि ये हिमालय की विशालता का अद्भुत दृश्य भी प्रस्तुत करते हैं, जो मन और आत्मा दोनों को शांति प्रदान करते हैं। इसके साथ ही हरिद्वार और ऋषिकेश जैसे स्थान आध्यात्मिक वातावरण, योग, ध्यान और गंगा की दिव्यता के कारण लाखों विदेशियों को भी आकर्षित करते हैं। कुंभ और अर्धकुंभ जैसे आयोजन उत्तराखण्ड की धार्मिक विरासत को और गहरा बनाते हैं।
जहाँ एक ओर अध्यात्म है, वहीं दूसरी ओर उत्तराखण्ड रोमांच के शौकीनों के लिए भी स्वर्ग है। ऋषिकेश का रिवर राफ्टिंग, औली की स्कीइंग, नंदा देवी और पिंडारी ग्लेशियर के ट्रेक, रूपकुंड की रहस्यमयी झील, फूलों की घाटी का अद्भुत पुष्प संसार और मसूरी-नैनीताल जैसे हिल स्टेशन आधुनिक पर्यटन की मुख्य धुरी हैं। पर्वतारोहण के लिए भी उत्तराखण्ड एक मजबूत केंद्र है, जहाँ नंदा देवी, त्रिशूल और हिमालय की कई महत्वपूर्ण चोटियाँ पर्वतारोहियों को चुनौती देती हैं। झीलों का शहर नैनीताल और भीमताल परिवारिक पर्यटन का प्रमुख हिस्सा हैं, जबकि चकराता, मुन्स्यारी, खिर्सू और बिनसर जैसे शांत स्थल उन यात्रियों को आकर्षित करते हैं जो भीड़ से दूर शांति में प्रकृति का आनंद लेना चाहते हैं।
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उत्तराखण्ड की जैव विविधता भी इसके पर्यटन की विशिष्टता है। यहां स्थित जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क एशिया का पहला राष्ट्रीय उद्यान है, जो बाघ संरक्षण और जंगल सफारी के कारण विश्व प्रसिद्ध है। साथ ही राजाजी नेशनल पार्क, अस्कोट वाइल्डलाइफ़ सेंचुरी और नैनीताल–पिथौरागढ़ क्षेत्र के वन क्षेत्र पर्यावरणीय पर्यटन को समृद्ध बनाते हैं। हिमालयी मोनाल, कस्तूरी मृग, हिम तेंदुआ और अनेक दुर्लभ पक्षियों का निवास उत्तराखण्ड को वन्य पर्यटन का महत्वपूर्ण केंद्र बनाता है।
सांस्कृतिक दृष्टि से उत्तराखण्ड की पहचान गढ़वाली और कुमाऊँनी परंपराओं, वाद्ययंत्रों, लोकनृत्यों और आहार-व्यवहार से जुड़ी है। जगरी, चांचरी, थड़िया, झोड़ा, चोलिया नृत्य और लोकगाथाएँ एक जीवंत सांस्कृतिक संसार का निर्माण करती हैं। यहाँ के मेले—नंदा देवी मेला, वैशाखी, हरेला, फूलदेई और उत्तरायणी—समुदायों को जोड़ते हैं और स्थानीय संस्कृति को जीवित रखते हैं। गाँवों की अतिथि–देवो–भव परंपरा पर्यटकों को पारिवारिक और आत्मीय अनुभव प्रदान करती है।
सरकार द्वारा हाल के वर्षों में इको-टूरिज्म, होम-स्टे योजनाओं और ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा दिया गया है। इसका उद्देश्य न केवल पर्यटकों को स्थानीय अनुभव प्रदान करना है, बल्कि पहाड़ी अर्थव्यवस्था को मजबूत कर युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना भी है। स्मार्ट ट्रैवल मार्ग, बेहतर सड़कें, रोपवे परियोजनाएँ, एडवेंचर पार्क, ग्रीन टूरिज्म नीतियाँ और चारधाम यात्रा में तकनीक का उपयोग उत्तराखण्ड को पर्यटन–मित्र प्रदेश बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। किन्तु इसके साथ ही पर्यावरण संरक्षण, कचरा प्रबंधन और भीड़ नियंत्रण जैसे मुद्दे भी उतने ही आवश्यक हैं, ताकि हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी संतुलित रह सके।
इस प्रकार उत्तराखण्ड पर्यटन केवल दृश्य–भ्रमण नहीं, बल्कि जीवन को अनुभव करने की एक प्रक्रिया है। यह प्रकृति, रोमांच, संस्कृति और अध्यात्म का समग्र मिश्रण है, जो मनुष्य को बाहरी दुनिया के साथ–साथ स्वयं के भीतर की यात्रा करने के लिए प्रेरित करता है। उत्तराखण्ड अपनी अद्भुत प्राकृतिक विरासत, शांत वातावरण और सादगीपूर्ण जीवनशैली के साथ हर यात्री को कुछ न कुछ नया देकर लौटाता है। चाहे तीर्थ यात्रा हो, रोमांचक यात्रा हो, पर्यावरण की खोज हो या सांस्कृतिक अनुभूति—उत्तराखण्ड हर रूप में अद्वितीय है। यही कारण है कि इसे देवभूमि के साथ–साथ पर्यटन की धरा भी कहा जाता है।








