
देहरादून। पहाड़ों में चूल्हे पर खाना बनाने की परंपरा महिलाओं के स्वास्थ्य पर भारी पड़ रही है। राजकीय दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय के टीबी एवं चेस्ट रोग विभाग में आने वाले मरीजों के आंकड़े बताते हैं कि सीओपीडी (क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) के कुल मामलों में 80 प्रतिशत मरीज पर्वतीय क्षेत्रों से आते हैं, और इनमें सबसे बड़ी संख्या महिलाओं की है।
विश्व सीओपीडी दिवस के अवसर पर विशेषज्ञों ने चेतावनी देते हुए कहा कि चूल्हे पर जलने वाली लकड़ी और अन्य ईंधन से निकलने वाला धुआं महिलाओं के फेफड़ों को लगातार नुकसान पहुंचा रहा है। चिकित्सकों के अनुसार सीओपीडी एक लंबी अवधि की गंभीर बीमारी है, जिसमें शरीर में हवा के प्रवाह में बाधा आती है और मरीज को सांस लेने में भारी दिक्कतें होती हैं।
Government Advertisement
वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. मानवेंद्र गर्ग के मुताबिक अस्पताल की ओपीडी में रोजाना लगभग 100 मरीज आते हैं, जिनमें से 60 सीओपीडी के होते हैं। इनमें 80 प्रतिशत पर्वतीय इलाकों से हैं और अधिकांश महिलाएं 20–25 वर्षों से चूल्हे पर खाना बना रही हैं। लगातार धुएं के संपर्क में रहने से उनके फेफड़ों का बड़ा हिस्सा संक्रमित हो चुका है। इसके अलावा पहाड़ों की ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी, सालभर लगने वाली जंगल की आग और पर्यावरणीय प्रदूषण भी बीमारी को और गंभीर बना रहे हैं।
डॉ. गर्ग बताते हैं कि सबसे ज्यादा प्रभावित लोग 50 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के हैं। इन मरीजों में शुरूआती लक्षण तेज बुखार, सांस फूलना और रंगयुक्त बलगम का आना है। चिकित्सक बताते हैं कि यदि समय रहते इलाज और जागरूकता न बढ़ाई गई तो यह बीमारी और बड़ी समस्या बन सकती है।
महिलाओं और ग्रामीण परिवारों के लिए जरूरी है कि पारंपरिक चूल्हे की जगह धुएं रहित चूल्हे और LPG जैसी स्वच्छ ऊर्जा का प्रयोग बढ़ाया जाए, ताकि अगली पीढ़ियों को इस गंभीर बीमारी से बचाया जा सके।





