
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में लंबे समय से जारी पलायन की पीड़ा के बीच अब एक सुखद बदलाव नजर आ रहा है। पलायन निवारण आयोग की नवीनतम सर्वे रिपोर्ट बताती है कि राज्य के वीरान हो चुके गांवों में फिर से रौनक लौट रही है। गांव छोड़कर शहरों और दूसरे राज्यों में आजीविका तलाशने गए कुल 6282 प्रवासी अब अपने घरों की ओर लौट आए हैं। यह तथ्य भी खास है कि इन लौटने वालों में सबसे बड़ी हिस्सेदारी 25 से 35 वर्ष आयु वर्ग के युवाओं की है, जिनकी संख्या कुल रिवर्स पलायन करने वालों का 43 प्रतिशत है। युवा पीढ़ी का गांवों में लौटना यह संकेत देता है कि पहाड़ फिर से अवसरों का नया केंद्र बन रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, 25 साल से कम आयु वर्ग के 28.66 प्रतिशत और 35 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के 29.09 प्रतिशत प्रवासियों ने भी गांव वापसी की है। रिवर्स पलायन में पौड़ी जिला पहले स्थान पर है, जहां 1213 लोग लौटे हैं। इसके बाद 976 के साथ अल्मोड़ा दूसरे और 827 के साथ टिहरी तीसरे स्थान पर है। चमोली, उत्तरकाशी, बागेश्वर और पिथौरागढ़ जैसे जिलों में भी लौटने वालों की संख्या उल्लेखनीय है, जबकि ऊधमसिंह नगर में यह संख्या सबसे कम यानी 38 है।
गांव लौटने वाले लोग अब कृषि, पशुपालन और पर्यटन को मुख्य व्यवसाय के रूप में अपना रहे हैं। 39 प्रतिशत प्रवासियों ने कृषि क्षेत्र में नए सिरे से खेती और बागवानी की राह पकड़ी है। इनमें सब्जी उत्पादन, मसालों और औषधीय फसलों की खेती, मधुमक्खी पालन, जैविक खेती और मशरूम उत्पादन जैसे कार्य प्रमुख हैं। 21.5 प्रतिशत प्रवासी पर्यटन क्षेत्र से जुड़े हैं, जहां वे होमस्टे, छोटे होटल, रेस्टोरेंट और ट्रैवल सेवाओं का संचालन कर रहे हैं। लगभग 18 प्रतिशत लोग पशुपालन क्षेत्र में डेयरी, बकरी पालन, पोल्ट्री और मत्स्य पालन जैसे कार्यों में जुटे हैं। यह परिवर्तन न केवल गांवों में नई अर्थव्यवस्था का संकेत है, बल्कि स्थानीय संसाधनों पर आधारित टिकाऊ रोजगार का मजबूत उदाहरण भी है।
कोविड महामारी के बाद रिवर्स पलायन की गति और तेज हो गई। रिपोर्ट दिखाती है कि विदेशों से लौटने वाले 169 प्रवासियों में सबसे अधिक 66 टिहरी जिले के हैं। देश के अन्य राज्यों से 4769 लोग गांव लौटे, जबकि राज्य के भीतर ही एक जिले से दूसरे जिले में पलायन करने वाले 1127 लोग अब अपने मूल गांवों में वापसी कर चुके हैं। यह लौटना केवल मजबूरी नहीं बल्कि पहाड़ की मिट्टी के प्रति अपनत्व, आत्मनिर्भरता और स्थानीय जीवनशैली को नए नजरिए से अपनाने का संकेत देता है।
गांवों में लौटती चहल-पहल सिर्फ जनसंख्या वृद्धि का सूचक नहीं, बल्कि पहाड़ की संस्कृति, परंपरा और अर्थव्यवस्था को फिर से सशक्त बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। आने वाले समय में यह रिवर्स पलायन राज्य के ग्रामीण ढांचे में गहरा बदलाव ला सकता है और उन गांवों में नई ऊर्जा भर सकता है, जो कभी खाली घरों और बंद स्कूलों की वजह से चर्चा में रहते थे।





