
नैनीताल। उत्तराखंड के शिक्षा विभाग में एक चौंकाने वाला घोटाला सामने आया है, जिसने पूरे राज्य के युवाओं के भरोसे और मेहनत पर पानी फेर दिया है। सहायक अध्यापक भर्ती में लगभग चालीस लोगों ने जाली प्रमाणपत्रों और फर्जी दस्तावेजों के सहारे सरकारी नौकरी हासिल कर ली, जबकि असली हकदार, योग्य और स्थानीय बेरोजगार युवा अपने अवसर से वंचित रह गए। वर्ष 2024 में प्रारंभ हुई सहायक अध्यापक भर्ती प्रक्रिया में डीएलएड धारी अभ्यर्थियों के लिए ऊधमसिंह नगर में कुल 309 पद स्वीकृत किए गए थे।
इनमें बैकलॉग और दिव्यांग कोटे की कुछ सीटें भी शामिल थीं। नियुक्ति प्रक्रिया पूरी होने के बाद जब दस्तावेज़ों की जांच शुरू हुई, तब यह सामने आया कि लगभग 40 लोगों ने अपनी योग्यता और निवास प्रमाणपत्र जाली तरीके से प्रस्तुत किए थे। ये लोग उत्तर प्रदेश के निवासी थे, जिन्होंने वहीं से डीएलएड किया था, लेकिन भर्ती के समय उत्तराखंड निवासी बनकर आवेदन किया। दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार ने 2017 में एक शासनादेश जारी किया था, जिसके अनुसार डीएलएड प्रशिक्षण के लिए केवल यूपी के स्थायी निवासी ही पात्र होंगे।
बावजूद इसके, इन 40 अभ्यर्थियों ने अपने निवास प्रमाणपत्रों में हेरफेर कर उत्तराखंड का स्थायी निवासी बनना दर्शाया और इस प्रकार वे राज्य की भर्ती प्रक्रिया में शामिल हो गए। सिस्टम की लापरवाही और दस्तावेज़ों की सतही जांच के चलते ये लोग मेरिट सूची में शामिल हो गए और नियुक्ति पत्र प्राप्त कर सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत भी हो गए। अब जब विभागीय स्तर पर दस्तावेजों की गहन जांच शुरू हुई है, तो फर्जीवाड़े का यह जाल खुलने लगा है।
जांच में सामने आया है कि कई अभ्यर्थियों ने एक ही समय में दो राज्यों — उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड — के स्थायी निवास प्रमाणपत्र प्रस्तुत किए। यह प्रशासनिक व्यवस्था पर बड़ा प्रश्नचिह्न है कि आखिर तहसील स्तर पर किसने और किस आधार पर इन व्यक्तियों को उत्तराखंड का स्थायी निवास प्रमाणपत्र जारी कर दिया। इस पूरे मामले में शिक्षा विभाग अब सक्रिय हो गया है और फर्जी दस्तावेजों के जरिए नौकरी पाने वाले सभी 40 अध्यापकों को जांच के दायरे में लिया गया है। विभाग ने संबंधित तहसीलों से रिपोर्ट भी तलब की है।
सूत्रों के अनुसार, दोषी पाए जाने पर इन शिक्षकों की नौकरी रद्द की जा सकती है और उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमे भी दर्ज होंगे। यह मामला केवल एक भर्ती घोटाले का नहीं, बल्कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था और प्रशासनिक ईमानदारी पर गहरी चोट है। मेहनती और योग्य स्थानीय युवाओं के अधिकार छीनने वाले ऐसे फर्जीवाड़े न केवल व्यवस्था में अविश्वास बढ़ाते हैं, बल्कि यह भी दिखाते हैं कि पारदर्शिता और सख्ती के बिना कोई भी भर्ती प्रणाली न्यायसंगत नहीं हो सकती।





