
कविता : नया साल, इस दिन घर के पास जिसे भी देखना उसके पास जाना शायद वह ग्रीटिंग्स लेकर आया हो जाड़े में कभी बाहर घूमने जाना वहां गर्म पानी के झरने में नहाना गुनगुनी धूप में आकर कभी झरने के… बिहार से राजीव कुमार झा की कलम से…
इस दिन घर के
पास
जिसे भी देखना
उसके पास जाना
शायद वह ग्रीटिंग्स
लेकर आया हो
जाड़े में कभी बाहर
घूमने जाना
वहां गर्म पानी के
झरने में नहाना
गुनगुनी धूप में
आकर
कभी झरने के
किनारे बैठ जाना
यहां कोई हवा
तुम्हारा पता पूछती
खेतों से चली
आयेगी
कुहासे में सर्द रातें
अलाव में
हाथ सेंकते
कट जाएंगी
तालाब के किनारे
सुबह धूप छाएगी
जिंदगी का लुत्फ
इसी मौसम में
तुम पहाड़ की
सीढ़ियों पर
चढ़ कर उठाएगी
इसकी वादियों में
हराभरा जंगल
आकाश के
तल में समाया
तुम्हारी यादों में
यह दिन
थोड़ा पास आकर
सबने बिताया
नेहभरी आंखों में
वह मौन आमंत्रण
आकाश मुस्कराया
रात भर
यह सब याद आया
उसके आते ही
पिया के चेहरे पर
एक नया रंग छाया
तुमने दीपक जलाया
सुबह का आलोक
राहों में यहां छाया
नदी ने सितारों को
सुबह गीत गाकर
सुनाया
उसी राह में सावन
सबके साथ आया
यहां भगवान को
किसने जल चढ़ाया
आज फूल खिले
सूरज चंदा
यह सब देख कर
आकाश में हंसते रहे
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