पुस्तकें हमारी सबसे श्रेष्ठ मित्र
पुस्तकें हमारी सबसे श्रेष्ठ मित्र… अगर आपके पास जरूरत से अधिक पुस्तकें हैं और वे आपके काम नहीं आ रही हैं तो आप उन्हें आस पड़ोस में बच्चों को पढ़ने के लिए दीजिए। मौहल्ले में कोई वाचनालय है तो वहां दीजिए ताकि अधिकाधिक बच्चे उन्हें पढ़ कर लाभान्वित हो सकें अगर कोई सरकारी स्कूल है #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
पुस्तकें हमारी सबसे श्रेष्ठ मित्र हैं। पुस्तकें केवल किताबें ही नहीं है अपितु एक तरह की विधा है और विधा का कभी भी अपमान नहीं करना चाहिए। जीवन में सदैव सद् साहित्य पढे और दूसरों को भी पढ़ने के लिए दीजिए। चूंकि ज्ञान तो बांटने से ही बढता हैं। सद् साहित्य व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्माण में काफी सहायक होता है। इसलिए युवाओं को चाहिए कि वे मोबाइल पर से ध्यान हटा कर सद् साहित्य पढ़ें। वही उनसे प्राप्त ज्ञान को अपने जीवन में आत्मसात करें और नये भारत का नव निर्माण करें।
सद् साहित्य ही तो हमारे सर्वश्रेष्ठ व अच्छे मित्र हैं। जब हम अकेले होते हैं तब उन्हें पढ़ कर हम अपना समय व्यतीत करते हैं और हमें पता ही नहीं चलता है कि समय कितना आसानी से निकल गया। साहित्य सृजन करते समय मन और मस्तिष्क दोनों ही शांत होने चाहिए। ताकि विचारों की श्रृंखला टूटे नहीं और लेखन कार्य धारा वाह रूप से चलता रहे।
अगर आपके पास जरूरत से अधिक पुस्तकें हैं और वे आपके काम नहीं आ रही हैं तो आप उन्हें आस पड़ोस में बच्चों को पढ़ने के लिए दीजिए। मौहल्ले में कोई वाचनालय है तो वहां दीजिए ताकि अधिकाधिक बच्चे उन्हें पढ़ कर लाभान्वित हो सकें अगर कोई सरकारी स्कूल है तो वहां के अध्यापकों से सम्पर्क कर उनके स्कूल के वाचनालय में भी बच्चों को पढ़ने के लिए आप पुस्तकें दे सकते हैं। लेकिन रद्दी में कभी भी साहित्यिक पुस्तकें बेचकर साहित्य का अपमान न करें।
सद् साहित्य मां सरस्वती के आशीर्वाद और असीम कृपा के बाद ही लिखा जाता है। अतः सद् साहित्य मां सरस्वती के आशीर्वाद का एक तरह से उत्तम प्रसाद हैं जो जितने हाथों में जायेगा उतना ही लेखक का लेखन कर्म सार्थक होगा।
शान्ति और सद्भावना की प्रतिमूर्ति : स्व0 प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री