साहित्य लहर
कविता : बढ़ती आबादी

बढ़ती आबादी… दिन- ब-दिन ऐसे ही आबादी जो बढ़ती जाएगी पेट भरने को दुनियाअन्न कहां उगाएगी ? जीवित रहने को ये प्राणवायु कहां से लाएगी ? चेतो-चेतो अब तो चेतो नहीं देर बहुत हो जाएगी यही हाल रहा बढ़ती आबादी का… #सुनील कुमार, बहराइच, उत्तर-प्रदेश
बढ़ती आबादी देखकर
धरा ये थर-थर कांप रही
देखो-देखो आबादी ये
तेज कितना भाग रही।
सोच रही है धरती ये
दुनिया, बात क्यों न मान रही
तेजी से बढ़ती आबादी को
क्यों नही ये थाम रही।
सोचों-सोचों कुछ तो सोचों
तेजी से बढ़ती आबादी का
कुछ तो हल खोजो।
दिन- ब-दिन ऐसे ही
आबादी जो बढ़ती जाएगी
पेट भरने को दुनिया
अन्न कहां उगाएगी ?
जीवित रहने को ये
प्राणवायु कहां से लाएगी ?
चेतो-चेतो अब तो चेतो
नहीं देर बहुत हो जाएगी
यही हाल रहा बढ़ती आबादी का
स्वर्ग से सुंदर धरा मिट जाएगी।