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कविता : ना बरसों रे मेघा… शून्य पड़ा बेसुध मृत सा शरीर उनसे मिलें बिना जैसे बीतेंअरसे आज फिर… आहट नहीं जाती मेरे दर से रोज मन में आते उनके भ्रम से कब हारेगा आकर मन की पीर रोज मर रहे हैं अजनबी डर से… #बंजारा महेश राठौर सोनू, मुजफ्फरनगर
[/box]बरसते बरसाते कुछ ऐसे बरसे
आज फिर जमकर मेघा बरसे
बूंदे छेड़तीं रही मेरी देह को
ये मन पिया मिलन को तरसे
आज …
उठी काली घटाएं नभ के घर से
अरमान सारे के सारे गये मर से
शून्य पड़ा बेसुध मृत सा शरीर
उनसे मिलें बिना जैसे बीतेंअरसे
आज फिर …
आहट नहीं जाती मेरे दर से
रोज मन में आते उनके भ्रम से
कब हारेगा आकर मन की पीर
रोज मर रहे हैं अजनबी डर से
आज फिर …
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