साहित्य लहर
कविता : जेठ का महीना
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चतुर्दिक छाई चैत के मेले से सब अपने घर आज दुपहरी में आए मौसम के किस्सों को सुनकर कोई गीत सुना हरा भरा जीवन हो सबका धूप भरे दिन का अंदेशा बारिश के मौसम की याद सताती. #राजीव कुमार झा
तुमको पाना
अपने घर को
चंद्रकिरण से कभी
सजाना
तुम जिस दिन से
आई
वसंत बहार के
गीतों की धुन
वर्षा में सबको देती
दरवाजे पर आज
सुनाई
भीतर मन से उमड़ रही
चारों ओर खुशियां
आंगन में कहीं समाई
बैसाख की धूप
चतुर्दिक छाई
चैत के मेले से
सब अपने घर
आज दुपहरी में आए
मौसम के किस्सों को
सुनकर
कोई गीत सुनाए
हरा भरा जीवन हो
सबका
धूप भरे दिन का
अंदेशा
बारिश के मौसम की
याद सताती