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राष्ट्रीय समाचार

युवा इंजेक्शन के माध्यम से लेते हैं नशा, नसें हो जाती हैं पंक्चर

युवा इंजेक्शन के माध्यम से लेते हैं नशा, नसें हो जाती हैं पंक्चर, पीजीआई के एक विशेषज्ञ ने बताया कि दवा की टेबलेट को पीसकर सैलाइन वाटर में पीसना खतरे से खाली नही है। शरीर की नसें अधिक महीन होती हैं…

रोहतक (हरियाणा)। अफीम से निजात दिलाने और दर्द निवारक के रूप में प्रयोग होने वाली दवाएं ही मर्ज बढ़ा रही हैं। इनका इस्तेमाल बढ़ने की वजह इन दवाओं का सस्ता होना और तेज प्रभाव से काम करना है। समाज में तेजी से नशा फैलाने में इन दवाओं के इस्तेमाल की जानकारी आने के बाद चिकित्सक भी हैरान हैं। उनकी नजर में यह चिंता का विषय इसलिए बन गया है क्योंकि युवा इन दवाओं को निगलने की बजाए इंजेक्शन के माध्यम से ले रहे हैं। एक अध्ययन के मुताबिक 15 से 25 आयु वर्ग के किशोर और युवा इन दवाओं को नशे के रूप में ज्यादा प्रयोग कर रहे हैं।

पंडित भगवत दयाल शर्मा स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय (पीजीआईएमएस) के मानसिक स्वास्थ्य संस्थान स्थित राज्य व्यसन निर्भरता उपचार केंद्र के विशेषज्ञ डॉ. सिद्धार्थ आर्य ने बताया कि किशोर और युवा अफीम की लत छुड़ाने के लिए दी जाने वाली दवा को पीस कर और डिजिटल वाटर में मिलाकर नसों में लगाते हैं। इसी तरह कुछ युवा मरीज ऐसे भी आए हैं जो दर्द निवारक दवाओं को भी पीसकर उसे सैलाइन वाटर (अस्पतालों में मरीजों को चढ़ाई जाने वाली बोतल) में मिलाकर नसों में लगाते हैं।

डॉक्टर के मुताबिक किसी दवा की गोली के रूप में खाने और नसों में इंजेक्शन के रूप में लेने से बड़ा अंतर पड़ जाता है। खाने के बाद गोली थोड़ी देरी से काम करती है और इंजेक्शन से नस में लेने पर दवा तुरंत काम करती है। नशे के आदी कुछ युवा प्रतिदिन तीन से चार इंजेक्शन तक लगा लेते हैं। पीजीआई के इस विभाग में हर साल एक हजार से अधिक मरीज नशे से निजाते पाने के लिए उपचार कराने आते हैं। इसमें शराब के अलावा अफीम की लत वाले अधिक होते हैं। अब दर्द निवारक दवाओं से नशा करने वाले केस बढ़ रहे हैं।

डॉ. सिद्धार्थ आर्य ने बताया कि नशे के लिए बार-बार इंजेक्शन का प्रयोग होता है। इससे हाथ, पैर की नसों के साथ जांघ की नसें भी पंक्चर हो जाती हैं। इंजेक्शन लगाने वाला स्थान कपड़े से ढका होने के कारण घरवालों की नजर से बच जाता है। जब स्थिति बिगड़ती है तब जानकारी मिलती है। कई बार इंजेक्शन इस तरह लगाए जाते हैं कि शरीर का अंग काला पड़ जाता है। डॉ. आर्य ने बताया कि वर्ष 2019 में बंगलूरू में ऐसे मरीजों का उपचार किया था और अब रोहतक पीजीआई में ऐसे मरीज इलाज के लिए आ रहे हैं।

यहां महम क्षेत्र के मरीजों की संख्या अधिक है। दवा से नशा करने वाले युवकों का एक ग्रुप बना हुआ है। पीजीआई के एक्सपर्ट ने बताया कि उनके पास ऐसे मरीज आ रहे हैं जो नशा छोड़ना चाहते हैं, लेकिन आदी होने के कारण ऐसा कर नहीं पा रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि इस तरह का नशा करने वालों में काला पीलिया होने का 50 फीसदी और एचआईवी होने का 15 प्रतिशत खतरा बढ़ जाता है।

पीजीआई के एक विशेषज्ञ ने बताया कि दवा की टेबलेट को पीसकर सैलाइन वाटर में पीसना खतरे से खाली नही है। शरीर की नसें अधिक महीन होती हैं और इसमें कोई बड़ा पार्टिकल यदि जाता है तो ये ब्लॉक हो सकती हैं। यह ब्लाॅकेज हार्ट अटैक या ब्रेन स्ट्रोक का कारण बन सकता है। इसलिए जरूरी है कि इंजेक्शन से किसी भी प्रकार के नशे से बचा जाए। साथ ही इन दवाओं की उपलब्धता किसी के लिए आसान नहीं होनी चाहिए। डॉ. सिद्धार्थ ने बताया कि राज्य व्यसन निर्भरता उपचार केंद्र में आने वाले युवाओं को काउंसिलिंग के जरिए इस तरह के नशे से बचाया जा रहा है।


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