तुम जिस भाव में प्रभु को भजोगे उसी रुप में आपको दर्शन होंगे

तुम जिस भाव में प्रभु को भजोगे उसी रुप में आपको दर्शन होंगे, जिस रूप में आप प्रभु को देखना चाहोगे, उसी रूप में आपको प्रभु दर्शन भी देंगे और प्रभु को ही क्यों इस जगत में भी जैसी हमारी दृष्टि होती है… बिहार से देवभूमि ब्यूरो चीफ अशोक शर्मा के सौजन्य से…
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि-
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
तुम जिस भाव में, जिस रूप में उस प्रभु को भजोगे उसी रुप में वह प्रभु आपको दर्शन देंगे। जब कोई भक्त सच्चे हृदय से अपने प्रभु को बुलाता है तो प्रभु वहाँ अवश्य जाते हैं। जो प्रभु को जिस भाव से भजता है, प्रभु उसे उसी भाव में प्राप्त होते हैं। माँ कौशल्या और माँ देवकी ने प्रभु को वात्सल्य भाव से भजा तो उनके लिए प्रभु पुत्र बनकर ही आए और रावण व कंस आदि ने प्रभु को शत्रु भाव से भजा तो उनके लिए वह प्रभु शत्रु बनकर ही आए।
जिस रूप में आप प्रभु को देखना चाहोगे, उसी रूप में आपको प्रभु दर्शन भी देंगे और प्रभु को ही क्यों इस जगत में भी जैसी हमारी दृष्टि होती है, वैसी ही सृष्टि हमें नजर आने लगती है। इसीलिए हमारे शास्त्रों ने आदेश किया कि सही और गलत सृष्टि में नहीं अपितु आपकी दृष्टि में होता है। आप स्वयं में अच्छा बनने का प्रयास तो करें दुनियाँ भी अच्छी नजर आनी लगेगी।
दुनियाँ अच्छी है तो केवल उनके लिए जिनके भीतर अच्छाई है और दुनियाँ बुरी है तो उनके लिए जिनके भीतर बुराई है। वैद्य के पास भी नजर का इलाज तो संभव है पर नजरिए का नहीं। उसका इलाज तो आपको स्वयं करना होगा।नजर बदलने से नजारे बदल जाते हैं इसलिए जिस भाव से अथवा तो जिस दृष्टि से आप प्रभु को अथवा जगत को देखना चाहेंगे वो वैसे ही नजर आने लगेंगे। अच्छा सोचो और अच्छा देखो ताकि दुनियाँ आपके लिए भी अच्छी नजर आने लगे।
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