
सुनील कुमार माथुर
जोधपुर, राजस्थान
आज के समय में इंसान इतना ही सोचता हैं जितने से उसे लाभ हो रहा होता है। वह बेकार का नहीं सोच कर केवल अपने स्वार्थ के बारे में ही सोचता हैं, चूंकि यह दुनियां मतलब की दुनिया हैं। जहां हर तरफ स्वार्थी लोगों का ही बोलबाला है। बिना मतलब के कोई बात नहीं करता। न जाने लोगों की सोचने-समझने की शक्ति कहां चली गई।
आज देश में मंहगाई जिस रफ्तार से बढ़ रही है वह चिंता की बात है। जब भी किसी से बढ़ती मंहगाई को लेकर चर्चा करों तो हर कोई यहीं कह रहा हैं कि मंहगाई केवल तुम्हारे लिए ही नहीं बढ़ी है। सबके लिए बढ़ी है तो फिर तुम अकेले बोल कर चिंता क्यों कर रहे हों। तुम्हारी चिंता से मंहगाई घटने वाली नहीं है। अतः जैसा चल रहा हैं वैसा चलने दो। एक समय था जब एक रुपया लेकर जाते थे और थैली भर कर सामान आता था लेकिन आज हजार रूपए का सामान खरीद लीजिए पर थैला नहीं भरेगा।
हमारे देश के सिक्के इस बात के गवाह है। पहले एक रूपए के सिक्के पर गेहूं की बालियां होती थी जो यह दर्शाती थी कि एक रूपए में अनाज खरीद सकते हो, लेकिन आज उसी सिक्के पर अंगूठा लगा है जो इस बात का प्रतीक है कि एक रूपए में कुछ भी नहीं आता हैं। अब आप ही सोचिए कि मंहगाई कितनी बढ़ी है और हर देशवासी मौन हैं। क्यो — क्यों — क्यों —।
यह मौन यह बताता है कि आज अधिकांश लोग भ्रष्टाचार, लूटपाट, ठगी, हेराफेरी जैसे गैर कानूनी कार्य कर भ्रष्ट तरीकों की गंगा में हर रोज डूबकी लगा रहे है और वे अपना खर्च गलत तरीके से पूरा कर लेते है, परन्तु मध्यम वर्गीय परिवार इस मंहगाई व भ्रष्टाचार की गंगोत्री के चलते बेमतलब पीसा जा रहा हैं। हमारे जनप्रतिनिधि मात्र अपने स्वार्थ में, कुर्सी बचाने में व अपनी सुख सुविधाओं को बढ़ाने में ही लगे रहते है। यहीं वजह है कि देश में अमीर गरीब के बीच खाई हर रोज बढ़ती ही जा रहीं हैं। जब तक जनता-जनार्दन मौन रहेगी तब तक देश में जो गलत व अनैतिक कृत्य हो रहा हैं उसे कोई नहीं बदल सकता है।
Nice article
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