IAS बनने का सपना टूटा तो बटन मशरूम की कमाई से भरी झोली, अब…

IAS बनने का सपना टूटा तो बटन मशरूम की कमाई से भरी झोली, अब सालाना कमा रहे 50 लाख रुपये… घुटनों के दर्द में असरदायक, इम्युनिटी बूस्टर और आंखों की रोशनी के लिए फायदेमंद होता है। अगर मशरूम की जड़ों को गाय या भैंस को खिलाया जाए तो उनके दूध की मात्रा में इजाफा होगा और दूध गाढ़ा भी होगा। मशरूम को प्राकृतिक तौर से तैयार होने में 32 से 35 दिन लगते हैं जबकि कंट्रोल यूनिट में 40 दिन लग जाते हैं।
ऊधम सिंह नगर। पिछले कुछ वर्षों से लोगों की जुबां पर मशरूम का स्वाद तेजी से चढ़ा है। मशरूम की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए कइयों ने व्यापार के अवसर भी खोजे। काशीपुर के 36 वर्षीय शुभम का आईएएस बनने का सपना टूटा तो वे मशरूम के व्यापार से जुड़ गए। वर्तमान में वे सालाना 50 लाख रुपये कमा रहे हैं। साथ ही वे दूसरों के जीवन में भी उजियारा ला रहे हैं। काशीपुर के प्रतापपुर में शुभम बडोला ने ढाई बीघा खेत में एक फार्म बनाया है। यहां वे एसी फार्मिंग से बटन किस्म के मशरूम उगा रहे हैं।
साथ ही खेती के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली खाद भी तैयार करते हैं। इससे वह सालाना करीब 50 लाख रुपये कमा रहे हैं। मशरूम के खेती से उन्होंने न सिर्फ खुद के जीवन को बदला, बल्कि कई किसानों और युवाओं को भी सफलता का मार्ग दिखाया है। हालांकि, कभी इनका सपना सिविल सर्वेंट बनने का था लेकिन वहां मिली असफलता ने इन्हें मालिक बना दिया। शुभम ने बताया कि उन्होंने डबल एमबीए किया है और उसके बाद 2010 में यूपीएससी की तैयारी करने के लिए दिल्ली चले गए थे। चार साल तक प्रयास किया लेकिन सफलता नहीं मिली।
इसके बाद गूगल पार्टनर्स के साथ निजी सेक्टर में नौकरी की। हालांकि गांव लौटकर कुछ अपना काम करने की इच्छा मन में हमेशा थी। 2019 में वे पौड़ी स्थित बडोली अपने गांव गए आर खेती की इच्छा जाहिर की। तभी पिता ने बताया कि काशीपुर में अपना खेत हैं, वहां मशरूम का काम कर सकते हो। इसके बाद मशरूम की जानकारी जुटाकर फार्म के दो कमरों में मशरूम की फार्मिंग शुरू कर दी। इसी बीच कोरोना के कारण लॉकडाउन लग गया, जिससे सारा काम खुद ही करना पड़ता था। सौ से डेढ़ सौ किलो मशरूम की कटिंग करके स्वयं ही मंडी में सप्लाई करने जाता था।
धीरे-धीरे चार कमरों में मशरूम लगाना शुरू कर दिया। अब महीने में करीब दस टन मशरूम की सप्लाई होती है। पांच सालों की मेहनत के बाद पिछले वर्ष करीब 52 लाख रुपये का बिजनेस हुआ था। उनके साथ करीब तीन सौ लोग जुड़े हैं, जिन्हें रोजगार मुहैया कराया गया है। मशरूम के खेती के लिए उन्होंने उपयुक्त खाद खुद ही तैयार करना शुरू किया। ऊधमसिंह नगर में सीएचओ भावना जोशी ने उनकी खाद को खरीदा था। इसके बाद उन्होंने सरकार की ओर से किसानों को सब्सिडी पर खाद देने के लिए उनकी तैयार की हुई खाद खरीदना शुरू कर दिया।
किसानों को फ्री में मशरूम की खेती के लिए उन्होंने ट्रेनिंग भी शुरू कर दी। इसके बाद उन्हें एंबेसडर बना दिया गया। वे अब तक अल्मोड़ा, ऊधमसिंह नगर, नैनीताल और पौड़ी में किसानों को ट्रेनिंग दे चुके हैं। बटन किस्म को अंग्रेज भारत लेकर आए थे। भारत में पहले से मशरूम होता था, लेकिन इसे प्रोफेशनल फूड नहीं माना जाता था। अंग्रेज जब ऑयस्टर और बटन किस्म का मशरूम लेकर आए तो बटन किस्म को लोगों ने काफी पसंद किया। इसमें प्रोटीन अधिक होता है। साथ ही विटामिन डी और बी बड़ी मात्रा में पाया जाता है।
घुटनों के दर्द में असरदायक, इम्युनिटी बूस्टर और आंखों की रोशनी के लिए फायदेमंद होता है। अगर मशरूम की जड़ों को गाय या भैंस को खिलाया जाए तो उनके दूध की मात्रा में इजाफा होगा और दूध गाढ़ा भी होगा। मशरूम को प्राकृतिक तौर से तैयार होने में 32 से 35 दिन लगते हैं जबकि कंट्रोल यूनिट में 40 दिन लग जाते हैं। अगर इसे सामान्य तापमान में रखा जाए तो यह तीन दिन तक खराब नहीं होता है। वहीं फ्रीज में रखने पर सात से 10 दिनों तक फ्रेश रहता है। मशरूम से अचार, मुरब्बा, सूखे मशरूम के बिस्कुट, बड़ियां, मैगी, सॉस और केक आदि चीजें बनाई जा रही हैं। इनकी काफी डिमांड है।
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