आखिर क्या हो गया है राजनेताओं को
आखिर क्या हो गया है राजनेताओं को, आजादी के 75 सालो से इसी प्रकार देश की युवा पीढ़ी कार्यकर्ताओ को फंसाकर ठगने का काम ये चालबाज चुनावी पार्टीयां और उनके नेता करते आये हैं। #सतीश राणा, बाम बिचारक
आखिर इस देश के मुठीभर सत्तापक्ष या बिपक्षी पार्टीयां उनके राजनेताओ को क्या हो गया है? ये कैसे सुधरेंगे? जनता इन्हे कब सुधारेगी? इस देश को आज़ाद हूए 75 साल हो गए गरीब और गरीब हुआ,अमीर और अमीर ऐसा क्यों? आखरी उम्मीद कहा जा के रूकती है, ये तमाम सवाल मेरे दिमाग में उठते है कि आखिर जनता इनके झासे मे कैसे आ जाती हैं?
आखिर इसका हल क्या है? साथियों चुनावी चालबाज पार्टीयां और उसके नेता कैसे दबे कुचले गरीब जनता को ठगते आ रही हैं? देश की जनता को फासने के लिए चुनावी चालबाज पार्टीओ के नेता मुद्दे 3 प्रकार के गढते हैं वो पार्टी की रीढ़ क्युकि किसी पार्टी मे कार्यकर्ताओ को जोडने और जोड़े रखने के लिए बेसिक मुद्धा फेविकोल के माफिक कार्यकर्ताओ को चिपकाये रखता हैं वे निम्न प्रकार हैं
- बेसिक मुद्दे
- मौसमी मुद्दे
- सदाबहार मुद्दे
बेसिक मुद्दे-ये चुनावबाज पार्टीयों की जान होते है। जिस दिन किसी पार्टी के बेसिक मुद्दे हल हो जाते है उस दिन पार्टी की ज़रूरत ख़त्म हो जायेगी इसलिय ये चुनाव बाज पार्टीयां बेसिक मुद्दों को कभी हल कभी नही करेंगे और न किसी दूसरी पार्टी को कभी हल करने देंगे। बल्की चुनावी चालबाज पार्टीयां बेसिक मुद्दे आपस मे बाटकर हमेशा ज़िन्दा बनाये रखती हैं ताकि इनके पार्टी क आस्तित्व बना रहे
ये केवल बेसिक मुद्दों के लिए लड़ने का अभिनय नाटक करते हूए इस तरीके का ड्रामा स्टेज पर करते हैं कि जनता को वाकई लगे कि पार्टी मुद्दों के हल को लेकर ‘सीरियस’ है। इनके बेसिक मुद्दे-
- बीजेपी – राम जन्म भूमि, कृष्ण जन्म भूमि, काशी विश्वनाथ देवालय, समान नागरिक संहिता,स्वदेशी, हिन्दू राष्ट्र, अखंड भारत के सपने आदि आदि।
- कोंग्रेस – गरीबी, भुखमरी, सेकुलरिस्म, भ्रष्टाचार*, गांधी परिवार और उनकी शहादत आदि आदि। (यह मुद्दा पहले कोंग्रेस के पास था पर मुद्दे की ‘मिस हेंडलिंग’ की वजह से हाथ से निकल गया।)
- आम आदमी पार्टी – लोकपाल, भ्रष्टाचार, आम आदमी वाद, भ्रष्टाचार लोकपाल भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार, गांधीवाद भगत सिंह वाद (दोनों साथ में ), सिस्टम बदलना है आदि आदि।
- सपा – समाजवाद, लोहिया वाद, सेकुलरिस्म, सेकुलर समाजवाद, (4)कभी कभी पिछड़ा वाद मतलब यादववाद।
- बसपा – दलित, महादलित, कभी कभी ब्राह्मण, फिर दलित और महादलित।
- लेफ्ट – गरीबी, साम्यवाद।
- डीएमके और एआईडीएमके – तमिलवाद।
- तृणमूल कोंग्रेस – गरीबी, सेकुलरिज्म।
- जनता दल यूनाइटेड व राष्ट्रीय जनता दल – सुशासन, लोहिया वाद, सेकुलरिज्म, पिछड़ा वाद।
इन सभी मुद्दो को जीवित रख हमेशा खूबसूरत नारे गढ़ते हैं, तथा अखबारों, पोस्टरों और विज्ञापनों में चलवाते हैं। तरह तरह के भावुक नारों से आकर्षित करते है-
- कार्यकर्ताओं को बैठको और रैलियो में बुलाकर उन्हें सैद्धान्तिक भाषण देते हूए मालाए,साफे,पगड़ियाँ आदि पहनाने और पहनने में व्यस्त रखते हैं। ज़िले शहरो मे कार्यकारणी बनाते रहते हैं और छोटे नेताओं के फोटो वगेरह शहरो के चौराहो और समय समय पर अखबारों में छपवाते रहते हैं। ताकि इससे कार्यकर्ता ‘खुश’ रहे और संगठन के लिए कुछ भी करने को तैयार बने रहे।
- महीने दो महीने में कार्यकर्ताओं को ‘इकठ्ठा’ कर के भोजन परसाद वगेरह के आयोजन कराते रहते हैं, इस से कार्यकर्ताओं का मनोरंजन होता है तथा एकता बनी रहती है।
- कार्यकर्ताओं को रसीद बुक्स पकड़ा कर नए मेंबर बनाने को कहते हैं… साथियों, ध्यान रहे यह सब गतिविधियों का मूल उद्देश्य कार्यकर्ताओं का टाइम पास करना है, ताकि कार्यकर्ताओं का ध्यान समस्याओं के वास्तविक समाधान की ओर न जाए वरना वे खाली टाइम में इधर उधर तांक झाँक करेंगे और उन जनवादी संगठनो तक पहुँच जायेंगे जो कि वास्तविक समाधानों पर कार्य कर रहे है।
- इसलिए यदि फिर भी कार्यकर्ताओं के पास समय ज्यादा बच रहा हो तो उनके टाइम को खपाने के लिए निम्नलिखित तरीको का इस्तेमाल भी करते हैं :
(1) खून दान करने, गायो को चारा खिलाने, पेड़ पौधे लगवाने प्याऊ खुलवाने टाइप के चिल्लर कार्यो में फंसा देते हैं।
(2) महापुरषो की जयंतियो पर पैदल या वाहन रैलियाँ निकलवा या विचार गोष्ठिया आयोजित करवाते हैं। फिर भी यदि उनमे उर्जा बच रही हो तो :
(3) होशियार और पढ़े लिखे कार्यकर्ताओं को सोशल मिडिया में उलझा कर नेताओं की प्रसंषा में लम्बे लम्बे पोस्ट भेजवाते हैं ताकि पोस्ट लिखने पर उनका बचा खुचा टाइम चूसा जा सके और वे जनवादी संघर्शिल जनता के लेख लेखनी सूचनाये पढने से वंचित रह जायें।
(4) चालबाज चुनावी नेता विपक्षी दलों के खिलाफ ज्ञापन देना, प्रदर्शन करना, रास्ते रुकवाना, धरने आदि करवाना, पुतले फूंकवाना आदि में फंसा देते हैं।
(5)इन सब गोरख धंधो के दौरान यदि किसी कार्यकर्ता को चोट लग जाती है या जेल हो जाती है तो, एक छोटा मोटा आयोजन करके नेता जी उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर अपना फोटो खिंचवा अखबार में भी छपवा देते हैं। ताकि कार्यकर्ता को लगे की पार्टी उसके नेता हमे मानते जानते हैं।
आजादी के 75 सालो से इसी प्रकार देश की युवा पीढ़ी कार्यकर्ताओ को फंसाकर ठगने का काम ये चालबाज चुनावी पार्टीयां और उनके नेता करते आये हैं। इनसे सर्तक रहते हूए आप जनवादी संघर्षशील जनता का साथ दे ताकि ब्यवस्था परिवर्तन हो सके।
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