मोबाइल क्या आया

सुनील कुमार माथुर
मोबाइल क्या आया हम अपनों को ही भूल गये । दिन भर व्हाटसएप , मेल , यू ट्यूब , फेसबुक , गूगल मीट में डूबे रहते हैं । मोबाइल क्या आया हैं सवेरे उठकर माता पिता व अपने से बडों के पांव छूकर उनका आशीर्वाद लेना ही भूल गए हैं । अपनों के संग बातचीत करना भी हम भूल गयें ।
एक ही गांव व शहर में रहते हुए भी फोन पर बातचीत करने से भी दूर हो गये । माता – पिता , भाई बहन , पत्नी व बच्चों तक को समय देना और उनकी जरुरतों को पूरा करना भूल गये । मोबाइल क्या आया हम अपनों को ही भूल गयें । हर पल हम मोबाइल में डूबे रहते हैं । यह भी जानते हैं कि इससे आंखें खराब होती हैं फिर भी इससे चिपके रहते है ।
मोबाइल क्या आया घर परिवार का सुख चैन छिन गया । रिश्ते नातों से दूर हो गये । बात करने से भी घबराने लगे है और गूंगे बहरे बन गये । पहलें जुबान चलती थी । विचार विमर्श होता था । चिंतन मनन होता था । तब जाकर ठोस निर्णय हो पाता था लेकिन आज जुबान बंद हैं । केवल मोबाइल के की बोर्ड पर दिन भर अंगुलियां चलती हैं और बिना सोचे समझे , चिंतन मनन किये ठोस निर्णय हो रहे हैं और मधुर व सुदृढ संबंधों में खटास आ रही हैं।
मोबाइल का भूत न जाने कहा से आया और जनता का सुखचैन , रिश्ते नाते सब कुछ इसने छिन दियें । न जानें भविष्य में और क्या क्या हम से छिन लेगा । इस छोटी सी डिब्बियां ने छिन ली हमारी सारी दुनियां।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
![]() |
From »सुनील कुमार माथुरस्वतंत्र लेखक व पत्रकारAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
---|
Nice
Right
Right
Nice
True
Right
U r very right that mobile phone has taken all the activities of general public.
True