
सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
जोधपुर। “हिंसा का प्रतिकार हिंसा से नहीं, बल्कि अहिंसा से ही संभव है।” यह विचार अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी और अणुव्रत लेखक मंच द्वारा “मेरे जीवन की प्रयोगशाला में अणुव्रत” विषय पर आयोजित ऑनलाइन संगोष्ठी में मुख्य वक्ता डॉ. नरेंद्र शर्मा ‘कुसुम’ ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा, “परिवर्तन एक निरंतर प्रक्रिया है और समय के साथ बदलाव आवश्यक होता है, लेकिन अणुव्रत का उद्देश्य समय के आगे झुकना नहीं, बल्कि लोकमंगल के लिए जीना है।”
डॉ. शर्मा ने यह भी कहा कि हर व्यक्ति का जीवन एक प्रयोगशाला है — हमें कोई देवता नहीं, बल्कि एक सजग, संयमी और सच्चरित्र इंसान बनकर जीना है। उन्होंने दोहराया, “संयम ही जीवन है, और मैंने कभी जीवन मूल्यों से समझौता नहीं किया।” डॉ. शर्मा ने अणुव्रत की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा, “यह विचारधारा पलायनवाद नहीं सिखाती, बल्कि जीवन की चुनौतियों से सीधे टकराने की प्रेरणा देती है। जिंदगी एक जंग है, इसलिए अणुव्रत कहता है — रुको मत, चलते रहो।”
साहित्यकार के प्रश्न पर सटीक उत्तर
कार्यक्रम के दौरान साहित्यकार सुनील कुमार माथुर के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए डॉ. शर्मा ने कहा, “अणुव्रत एक दीपक की तरह है, जो अंधकार रूपी बुराइयों को धीरे-धीरे मिटा रहा है। यदि यह दीपक न जलाया गया होता, तो समाज इतना अंधकारमय होता कि एक-दूसरे को पहचानना भी मुश्किल हो जाता।”
अन्य वक्ताओं के विचार
इस अवसर पर अविनाश नाहर और गजेन्द्र ने भी अपने विचार साझा किए। कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. नीलम जैन द्वारा प्रस्तुत “संयममय जीवन हो” गीत से हुआ। अध्यक्षीय संबोधन में प्रताप सिंह दुगड़ ने अणुव्रत आचार संहिता का पठन किया। मंच संचालन राष्ट्रीय संयोजक जिनेंद्र कुमार कोठारी और प्रभारी उपाध्यक्ष डॉ. कुसुम लूनिया ने किया।
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