
आनंद मोहन से विजय कुमार सिन्हा की दोस्ती, इन लोगों को आजीवन जेल में रखा जाना चाहिए। बिहार में इन लोगों ने अपना शासन स्थापित कर रखा था और जुलूस में अवैध पिस्तौल लेकर ऐसे लोग चलते थे और खुद को नेता बताया करते थे। ✍🏻 राजीव कुमार झा
[/box]बिहार में भाजपा नेता विजय कुमार सिन्हा आजकल कानूनी मामलों के सबसे बड़े जानकार बताए जा रहे हैं और आनंद मोहन के प्रति उनके मन में नीतीश कुमार से भी ज्यादा सहानुभूति है। क्योंकि उन्होंने आनंद मोहन को पंद्रह साल जेल में रखे जाने को लेकर सरकार से सवाल पूछा है। विजय कुमार सिन्हा लखीसराय के विधायक हैं और इसके पड़ोसी शहर बड़हिया में तीन दशकों तक अपराधियों का राज चलता रहा और यहां के बदमाशों का नाम अखबार में भी कभी नहीं छपता।
क्योंकि वे लोग पत्रकारों को अपने शूटरों के मार्फत घर से पकड़वा कर अपने ठिकानों पर बुलवाते थे और अपने बारे में प्रकाशित समाचारों के बारे में उल्टे पुल्टे सवाल पूछा करते थे। विजय कुमार सिन्हा ने इसके बारे में सरकार से कभी कोई सवाल नहीं पूछा और लखीसराय पुलिस प्रशासन के अधिकारियों से भी तब भिड़ गये जब नीतीश कुमार के साथ वह सत्ता में थे। सारे लोग जानते हैं कि विधानसभा में नीतीश कुमार से इस मुद्दे पर उनकी कहासुनी हुई थी।
जदयू ने इसके बाद भाजपा से नाता तोड़ लिया और आज भाजपा बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों के बाद सरकार बनाने का सपना देख रही है। बड़हिया का माहौल आज भी खराब है और लखीसराय एक काफी पिछड़ा शहर बना हुआ है। बड़हिया में विकास कार्य या तो नहीं होते हैं और अगर कुछ विकास कार्य यहां होता भी है तो उसमें धांधली होती है। विजय कुमार सिन्हा ने सामाजिक जीवन में ब्राह्मणों की समस्याओं पर मौन साधा और उनसे मिलना जुलना भी जरूरी नहीं समझा।
यहां कश्मीर के पंडितों की तरह से ब्राह्मण सब असहाय बनकर रहते हैं। बदमाश उनके घर पर रात में फोन करते हैं। अपराधियों का फिर बिहार की राजनीति में आगमन हो रहा है। बिहार में सरकारी सेवकों की हत्या के मामले को गैर जमानती अपराध और हत्यारे को आजीवन जेल में बंद रखने का कानून क्या गलत है जो सरकार इसे किसी आईएएस अफसर के द्वारा जारी परिपत्र के माध्यम से बदलना चाहती है। आखिर अपराधियों को सरकार किस वजह से सहानुभूति से अब देख रही है।
इन लोगों को आजीवन जेल में रखा जाना चाहिए। बिहार में इन लोगों ने अपना शासन स्थापित कर रखा था और जुलूस में अवैध पिस्तौल लेकर ऐसे लोग चलते थे और खुद को नेता बताया करते थे। आज ऐसे लोगों को सरकार फिर इज्जत दार बता रही है। आनंद मोहन को बिहार सरकार ने रिहा करने के लिए शायद किसी वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के पत्र के माध्यम से पहल की है। आनंद मोहन ने बिहार के सरगनाओं को इकट्ठा करके यहां सत्ता पर कब्जा करने की योजना बनाई थी।
उसी दौरान उनकी पार्टी का नेता छोटन शुक्ला मुजफ्फरपुर में मारा गया था और इसके प्रतिशोध में जी . कृष्णैया को कलक्टर के रूप में सरकार का प्रतीक समझकर उन्होंने नृशंसता से उसकी हत्या की थी । यह अक्षम्य अपराध है और राजनीति में अपराधी पृष्ठभूमि के लोगों को बिहार में फिर से बढ़ावा दिया जाना अनुचित होगा। फिर अनंत सिंह को भी रिहा करने की मांग भूमिहार करने लगेंगे।
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