
✍🏻 डॉ. सत्यवान सौरभ
कवि, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पैनलिस्ट
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हरियाणा के शिक्षक एक बार फिर से असमंजस, अफवाहों और अधूरी सूचनाओं के बीच फंसे हुए हैं।स्कूलों में रोज़ सुबह की शुरुआत चाय और स्टाफरूम की बातचीत से होती है – “ट्रांसफर कब होंगे?” इस प्रश्न का उत्तर किसी के पास नहीं, पर अनुमान सबके पास है।कोई कहता है अगस्त में, कोई कहता है कैबिनेट के बाद, कोई मानता है अब तो सत्र बीच में आ चुका है, इसलिए विभाग कुछ नहीं करेगा।सब कुछ ठहरा हुआ, धुंधला और अधर में लटका हुआ प्रतीत होता है।
मॉडल संस्कृति विद्यालयों और प्रधानमंत्री श्री योजना के तहत चयनित स्कूलों में शिक्षक तैनाती हेतु जो परीक्षा हुई थी, उसके परिणाम बनकर तैयार हैं।लेकिन घोषणा इसलिए नहीं हो रही क्योंकि सामान्य तबादला नीति 2025 को अभी तक कैबिनेट की स्वीकृति नहीं मिली है।यहां यह प्रश्न अनिवार्य हो जाता है कि क्या परीक्षा करवाने से पहले यह सुनिश्चित नहीं किया गया था कि नीति बन चुकी है या उसके अनुमोदन की समयसीमा क्या होगी? यदि परीक्षा का परिणाम नीति पर टिका है, तो उसे पहले क्यों लिया गया? यह एक प्रशासनिक चूक है या राजनीतिक विलंब?
परिणाम न घोषित करने का तर्क यह भी दिया जा रहा है कि वे सीलबंद लिफाफों में रखे गए हैं जिन्हें किसी ने नहीं देखा, ताकि कोई हस्तक्षेप संभव न हो।यह “सीलबंद ईमानदारी” की परंपरा एक ओर दिखाती है कि विभाग पारदर्शिता का ढोंग कर रहा है और दूसरी ओर यह भी स्पष्ट करता है कि परिणामों के साथ कुछ न कुछ संभावित ‘खेल’ से विभाग खुद भी डरता है। इस स्थिति को और अधिक हास्यास्पद बनाती है विभाग की दोहरी प्रवृत्ति – जब वह SMC (School Management Committee) जैसी संरचना बनाकर एक महीने में ही भंग कर देता है।यही विभाग है जो दिसंबर से तबादले करवाने की बात कर रहा है और जुलाई तक कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया।हर सप्ताह एक नया आदेश आता है और अगले सप्ताह कोई दूसरा अधिकारी उसे रद्द करा देता है।इससे यह साफ हो जाता है कि विभाग में समन्वय का सर्वथा अभाव है।हर कोई अपने स्तर पर “फैसला” लेने को तत्पर है, लेकिन शिक्षा व्यवस्था को दिशा देने वाला कोई नहीं।
शिक्षक वर्ग इस भ्रम और अपारदर्शिता से मानसिक थकावट का शिकार हो चुका है।हर विद्यालय में इसी एक मुद्दे पर बातचीत होती है – कोई ट्रांसफर की फाइल बनवा रहा है, कोई CCL फॉर्म भरवा रहा है, कोई रिजल्ट आने की प्रतीक्षा में है, और कोई अपने संपर्कों से जानकारी जुटाने की कोशिश में है।एक प्रकार का मानसिक खिंचाव और अस्थिरता है जो शिक्षकों के काम को प्रभावित कर रहा है।ऐसे में यह सोचने योग्य है कि जिस व्यवस्था पर भविष्य की पीढ़ी टिकी है, वह खुद अस्थिर और भ्रामक हो गई है। इसके पीछे प्रशासन की निर्णयहीनता तो है ही, साथ ही यह राजनीतिक प्राथमिकताओं की भी उपेक्षा है।चुनावों, घोषणाओं और दिखावटी योजनाओं में सरकारें व्यस्त हैं लेकिन शिक्षक तबादला नीति जैसी बुनियादी जरूरतों को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है।जब शिक्षक मानसिक रूप से अस्थिर रहेंगे, तो बच्चों की पढ़ाई कैसे स्थिर रह पाएगी? हरियाणा के कई जिलों में एक ही शिक्षक दो-दो स्कूलों में पढ़ा रहा है, कुछ स्कूलों में विषय विशेषज्ञ ही नहीं हैं, और दूसरी ओर जिनका तबादला होना चाहिए, वे वर्षों से एक ही स्थान पर टिके हैं।
MIS (मैनजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम) को आधार बनाकर ऑनलाइन तबादला प्रणाली की बात की गई थी।पर नीति न बनने के कारण यह सिस्टम भी अपडेट नहीं हो पा रहा।तकनीक का नाम लेकर प्रक्रियाओं को पारदर्शी बनाने का दावा तो किया गया, लेकिन जब तक नीति नहीं आती, तब तक सब कुछ एक क्लिक से दूर है।यह एक ऐसा डिजिटल सपना है जो अभी तक साकार नहीं हुआ। शिक्षकों का प्रमोशन हुआ, कई स्थान रिक्त हो गए।अब सवाल यह है कि क्या ट्रांसफर प्रमोशन के बाद होंगे? अगर हां, तो फिर कितने और प्रमोशन लंबित हैं? इन सवालों का कोई जवाब विभागीय वेबसाइट पर नहीं है, केवल शिक्षक संगठनों के व्हाट्सएप ग्रुप में अफवाहें हैं।यही नहीं, विभाग के ही एक अधिकारी के अनुसार कैबिनेट की बैठक अगस्त में प्रस्तावित है।इसका मतलब है कि नीति अगस्त के अंतिम सप्ताह तक आएगी, तब तक तो सत्र का मध्य आ जाएगा।और फिर यही तर्क दिया जाएगा कि बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो, इसलिए तबादले अगले सत्र तक स्थगित किए जाएं।
यह चक्र हर साल दोहराया जाता है।नीति नहीं बनती, फिर कहा जाता है सत्र बीच में है।शिक्षक अपनी योजना नहीं बना पाते।न वे CCL ले सकते हैं, न मानसिक रूप से तैयार हो सकते हैं कि उन्हें स्थानांतरण मिलेगा या नहीं।विभाग एक गंभीर संकट में है – जहाँ फाइलें चल रही हैं पर निर्णय नहीं। इस असमंजस का सबसे बड़ा नुकसान विद्यार्थी झेलते हैं।जब कोई शिक्षक दो साल से ट्रांसफर की प्रतीक्षा में है, तो उसका ध्यान स्वाभाविक रूप से पढ़ाई से हटता है।कई शिक्षक ऐसे हैं जो घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर कार्यरत हैं और पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के कारण मन से अशांत हैं।क्या यही मानसिकता लेकर वे बच्चों को शिक्षा दे पाएंगे? यह भी सत्य है कि हरियाणा में तबादलों के नाम पर वर्षों से राजनीति हुई है।कभी ट्रांसफर लिस्ट में भाई-भतीजावाद होता है, कभी पंचायत चुनावों से पहले तबादले रुक जाते हैं, कभी किसी नेता के कहने पर नाम जोड़ या घटा दिए जाते हैं।पारदर्शिता की बात केवल नीति पत्रों में होती है, ज़मीन पर उसका कोई संकेत नहीं मिलता।
यदि सरकार और विभाग वास्तव में शिक्षा सुधार को गंभीरता से लेना चाहते हैं, तो उन्हें इस स्थिति को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।सबसे पहले – स्पष्ट समयसीमा दी जाए कि तबादला नीति कब आएगी।दूसरा – जब तक नीति नहीं आती, तब तक परीक्षा परिणामों को लेकर भ्रम न फैलाया जाए।तीसरा – विभागीय समन्वय बढ़ाया जाए ताकि एक आदेश आने के बाद कोई दूसरा अधिकारी उसे रद्द न कर सके।और सबसे महत्वपूर्ण – हर प्रक्रिया को ऑनलाइन ट्रैक करने योग्य बनाया जाए। ट्रांसफर कोई कृपा नहीं, यह शिक्षक का अधिकार है।उसे “फेवर” की तरह प्रस्तुत करना, एक अपमानजनक प्रवृत्ति है।शिक्षक न तो कोई राजनैतिक कार्यकर्ता हैं, न ही किसी गुट का हिस्सा।वे उस नींव के पत्थर हैं, जिन पर समाज का भविष्य खड़ा है।और यदि नींव को ही अनिश्चितता में रखा जाएगा, तो शिखर कैसे मजबूत बनेगा? यह लेख एक आग्रह है – शिक्षा विभाग और सरकार से, कि वह इस भ्रम, ढुलमुल रवैये और प्रशासनिक कायरता से बाहर आए।तबादला नीति को केवल फाइलों और लॉकरों में बंद करने के बजाय, ज़मीन पर उतारें।क्योंकि शिक्षक अब थक चुका है।और जब शिक्षक थकता है, तो पूरा समाज सुस्त हो जाता है।