राजीव कुमार झा की तीन कवितायें जिंदगी का आंगन… निरंतर… धूप…
प्यार की मुस्कान, जिंदगी में काश, तुम कभी आती, मुकद्दर की बात, फिर समझ आती, शायद कुछ दूर की, कोई जगह होती, तुम रेशमी धूप सी, यहां सारी उम्र, बांहों में सोयी रहती #राजीव कुमार झा
आंगन…
तुम प्यार में
सिर्फ स्वार्थ की बातें
सदैव करती रही
इतनी सारी खुशियों को
बटोरकर
प्यार के खेल में
हार – जीत से बचती
गयी
जिसने तुम्हारे मन के
बाग को सजाया
उसी को आज तुमने
यह सब बताया
प्यार की गंगा
सबके पास बहती
अरी सुंदरी
तुम्हारी मुस्कान
संसार में रोज
सबसे अच्छी लगती
तुम्हारी सांसें
यादों के आंगन में
महकती
निरंतर…
तुम्हें जिंदगी की
सारी खुशी को
सौंप कर
जो खामोश हो जाते
वे कभी मरते नहीं
अरी यार !
ऐसे बहादुर
पुकार सुनकर
फिर तुम्हारे
ठिकानों पर
आराम से चले आते
वे तुम्हें जानते
निरंतर
तन मन की खाक
जानते
तुम्हें अपना
कभी नहीं मानते
धूप…
प्यार की मुस्कान
जिंदगी में काश
तुम कभी आती
मुकद्दर की बात
फिर समझ आती
शायद कुछ दूर की
कोई जगह होती
तुम रेशमी धूप सी
यहां सारी उम्र
बांहों में सोयी रहती
शीत की बहार
वसंत की धूप आयी
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