
सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
कहते हैं कि गीलापन जिस प्रकार पेड़ की जड़ को पकड़ कर रखता है, ठीक उसी प्रकार शब्दों का मीठापन मनुष्य के रिश्ते को पकड़ कर रखता है लेकिन आज की युवा पीढ़ी में धैर्य, सहनशीलता, क्षमा, दया, करूणा, ममता, वात्सल्य, त्याग जैसे गुणों का नितांत अभाव देखने को मिल रहा है। वे बात-बात पर झगड़े, हिंसा व गाली-गलौज पर उतारू हो जाते हैं। ऐसा लगता है कि हम उनके हितैषी न होकर कट्टर दुश्मन हैं। आज प्रेम, स्नेह, भाईचारे की भावना व शिष्टाचार देखने को भी नहीं मिलता है। दूर से ही लोग हाय-हेलो कर इतिश्री कर रहे हैं। हमारी भारतीय सभ्यता और संस्कृति हमें ऐसा नहीं सिखाती है। आधुनिकता के नाम पर अपनी ही सर्वश्रेष्ठ सभ्यता और संस्कृति को मटियामेट करना अच्छी बात नहीं है। हमारी संस्कृति विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति है जिसकी रक्षा करना हमारा नैतिक दायित्व है। अतः शब्दों का मीठापन बनाए रखें और रिश्तों की प्रगाढ़ता को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाते रहिए। विनाश का आरम्भ तो वाणी के संयम खोने के साथ ही शुरू हो जाता है। अतः अपनी वाणी पर सदैव संयम रखें।
याद रखिए प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में श्रेष्ठ होता है, इसलिए उनकी श्रेष्ठता को हृदय से नमस्कार करना चाहिए। किसी को भी अपने से छोटा न समझें। यह तो वक्त ही बताएगा कि कौन छोटा है और कौन बड़ा। धनवान व्यक्ति सदैव अपने से कम दौलत वाले को हीन दृष्टि से ही देखता है जो उचित नहीं है। श्रेष्ठता धन-दौलत से नहीं आंकी जाती है बल्कि व्यक्ति के व्यवहार से आंकी जाती है इसलिए हमेशा सभी के साथ अच्छा व्यवहार ही करें, किसी को भी हेय दृष्टि से न देखें।
जीवन में झुकता वहीं है जिसे रिश्तों की कदर होती है, वरना अकड़ तो सब दिखा सकते हैं। प्रायः यह देखा गया है कि आप किसी को कितना भी समझा दीजिए लेकिन समझता तो व्यक्ति अपनी समझ के अनुसार ही है। कभी-कभी समझाते हुए झुंझलाहट भी होती है कि इसे इतनी बार समझा दिया, मगर यह समझता क्यों नहीं। वह समझता सब है लेकिन अपने हिसाब से समझता है, आपके कहे अनुसार नहीं। अतः कभी क्रोध करके अपने चेहरे की मुस्कुराहट को खत्म मत कीजिए। आपके चेहरे की मुस्कुराहट ही दूसरों का हौसला अफजाई है, अतः इस मुस्कुराहट को हर वक्त कायम रखें।
मोबाइल क्रांति क्या आई, हर किसी के बीच दूरियां आ गई हैं। एक ही सोफे पर बैठे होने के बावजूद एक-दूसरे से बातचीत न करके मोबाइल पर व्यस्त हैं और एक-दूसरे को व्हाट्सएप पर वीडियो और प्रातः कालीन शुभ प्रभात पोस्ट कर रहे हैं। इतना ही नहीं, शब्दों में भी कंजूसी कर रहे हैं। अच्छी रचनाओं को व्हाट्सएप पर पढ़ने के बाद धड़ाधड़ अंगूठा ठोक रहे हैं। भला ऐसी शिक्षा पद्धति किस काम की कि डिग्री लेने के बावजूद भी हमें अंगूठा लगाना पड़े। जिंदगी को आसान नहीं, बस खुद को मजबूत बनाना है। जीवन में सही समय कभी नहीं आता है बल्कि समय को सही बनाना पड़ता है।
आज विश्व भर में अशांति के बादल छाए हुए हैं। शांति भंग हो रही है और इंसान खून-खराबे पर उतारू है। यह उचित नहीं है। हिंसा से हिंसा खत्म नहीं की जा सकती। हिंसा को प्रेम, स्नेह और आपसी सद्भाव के व्यवहार से खत्म किया जा सकता है। हिंसा का मूल कारण केवल बिना वजह की ज़िद है। केवल ज़िद की एक गांठ खुल जाए तो उलझे हुए सब रिश्ते सुलझ जाएं। हमारे बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि गुस्सा और मतभेद बारिश की तरह होना चाहिए जो बरस कर खत्म हो जाएं। प्रेम हवा की तरह होना चाहिए जो खामोश हो किन्तु सदैव आस-पास ही रहे।
Nice article
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