बडे बुजुर्ग संयुक्त परिवार के आधार स्तम्भ
सुनील कुमार माथुर
हमारे बडे बुजुर्ग संयुक्त परिवार के आधार स्तम्भ हैं । वे संयुक्त परिवार की नींव हैं । उनके पास अनुभवों का अथाह भंडार है । वे ज्ञान के सागर हैं । जिस तरह से एक माला में अनेक मणियें होते हैं । मोती होते हैं । पुष्प होते हैं लेकिन इन सभी को डोर बांधे रखती हैं अन्यथा ये सभी बिखरे रहते हैं । ठीक उसी प्रकार संयुक्त परिवार के बुजुर्ग माला की वह डोर हैं जो परिवार को एकता के सूत्र में बांधे रखते हैं । परिवार को वे दया , करूणा , ममता , वात्सल्य रूपी डोर से पिरोये रखते हैं ।
हमारे बुजुर्ग संयुक्त परिवार के वटवृक्ष के समान हैं जिसकी शाखाएं विभिन्न ( परिवार के सदस्यगण ) विभिन्न विचारधाराओं की होते हुए भी वे उन्हें एक सा जल व खाद डालकर हरा – भरा रखते हैं । बुजुर्ग नई कोपलों को ( नन्हे नन्हे प्यारे बच्चों को ) प्यार व स्नेह रूपी जल से सींचते है । परिवार के सदस्यों में सामंजस्य बनायें रखते हैं । वे परिवार की सुख शान्ति व समृध्दि व एकता बनायें रखने के लिए नाना प्रकार के कष्ट झेलकर भी परिवार रूपी वटवृक्ष को अपने तप , त्याग, अपनी इच्छाओं को मारकर कभी भी अपने चेहरे पर दुःख का भाव नहीं आने देते हैं । चूंकि वे तो करूणा के सागर हैं । घर – परिवार के पालनहार है । वे देवता तुल्य है ।
जैसे जब – जब प्रभु अपने भक्तों को पीडा में देखते हैं तो वे उसकी पीडा को दूर करने के लिए दौडे चले आते हैं । ठीक उसी प्रकार हमारे बुजुर्ग भी संयुक्त परिवार के किसी सदस्य को दुःखी देखते हैं तो वे अपना दुःख व पीडा भूल कर पीडित परिवार के सदस्य की सहायता करते हैं । यह सेवा उनकी निस्वार्थ भाव की सेवा होती हैं । अतः युवा वर्ग को चाहिए कि वह अपने माता – पिता , बुजुर्गों व परिवार के अन्य सदस्यों की निस्वार्थ भाव से सेवा करें एवं ऐसा कोई भी कार्य न करें जिससे इनका दिल दुःखे । उन्हें पीडा पहुंचे । उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचे ।
संयुक्त परिवार एक वटवृक्ष हैं जिसे हमेशा हरा – भरा बनायें रखें । अर्थात परिवार में सदैव शांति , सद् भाव , प्रेम , स्नेह , विश्वास और भाईचारा बना रहें एवं परिवार के सदस्य एक – दूसरे की निस्वार्थ भाव से सहायता करें । जहां तेरे – मेरे की बात न होकर हम सबकी बात हो । जहां धन – दौलत , पद – प्रतिष्ठा, वैभव का कोई घमंड व अंहकार न हो । यह तभी संभव है जब हमारी सोच सकारात्मक हो । परिवार के लोग इस तरह से रहें जैसे एक वृक्ष की अनेक शाखाएं होती हैं और सभी हरी भरी रहकर वृक्ष का मान – सम्मान व गौरव बढाती हैं ठीक उसी प्रकार परिवार के सभी सदस्य प्रेम पूर्वक रहकर परिवार के बुजुर्गों का मान सम्मान व गौरव बढायें एवं विभिन्नता ( विभिन्न विचारधाराओं के होने के बावजूद ) के बावजूद एकता का परिचय देकर भारतीय सभ्यता और संस्कृति को बनायें रखें ।
हमारे बुजुर्ग संयुक्त परिवार के वटवृक्ष के समान हैं, जिसकी शाखाएं हरा-भरा रखते हैं ।
वटवृक्ष कि जब कोई हरी डाली सूख जाती हैं तब माली उसे काटकर फैंक देता हैं । मगर संयुक्त परिवार रूपी डाल में
( परिवार के सदस्यों में ) कोई अलग होना चाहें तो हमारे बडे बुजुर्ग उसे एकल परिवार की हानियों से अवगत कराते हैं और संयुक्त परिवार के लाभ बताते हैं लेकिन फिर भी वह डाल सूखना चाहती हैं ( पृथक होना चाहती हैं ) तो संयुक्त परिवार का माली ( बुजुर्ग सदस्य ) उस डाल को वृटवृक्ष से दूर कर देता हैं और अपने मन में अथाह दुःख झेलता हैं । वह दुःख व पीडा ऐसी होती हैं जिसे वह जिन्दगी भर भूलाना भी चाहे तो नहीं भूल पाता हैं ।
अतः संयुक्त परिवार रूपी वटवृक्ष को सदैव हरा – भरा बनायें रखें व एकता रूपी जल से उस वृक्ष को सीचे एवं करूणा , प्रेम , स्नेह व विश्वास , भाईचारा व वात्सल्य रूपी खाद बराबर डालते रहें ताकि इस वटवृक्ष की कोई भी शाखा सूख न पायें । कोई भी व्यक्ति केवल अच्छे कपडे पहनने से महान नहीं बनता है अपितु वह अपने मन के आदर्श विचारों और सकारात्मक सोच से ही महान बनता हैं ।
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बहुत ही अच्छा लेख है । आजकल यह सब सपने जैसा हो गया है ।
संयुक्त परिवार की बात ही कुछ और होती है ।
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